Saturday, 9 April 2016

Chaitra Navratri 2016 - माँ भगवती देवी ब्रह्मचारिणी माता

भगवती माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप ब्रह्मचारिणी का है !

 

यंहा 'ब्रह्म ' शब्द का अर्थ तपस्या है ! ब्रह्मचारिणी - तप का आचरण करने वाली - वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म - वेद, तत्व और तप ' ब्रह्म शब्द के अर्थ है ! ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है ! इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डलु रहता है ! अपने पूर्वजन्म में ये जब हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थी तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान् शंकर जी को पति - रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी ! इस दुस्कर तपस्या के कारण यह तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से पूजित हुई ! एक हज़ार वर्ष तक उन्होंने केवल फल मूल खाकर व्यतीत किये थे ! सौ वर्षो तक केवल शाक पर निर्वाह किया था ! कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे ! इस कठिन तपस्या के पश्चात् तीन हज़ार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रो को खाकर वह भगवान् शंकर की आराधना करती रही ! इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रो को भी खाना छोड़ दिया ! कई हज़ार वर्षो तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रही ! पत्तों को खाना छोड़ने के कारण उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ गया ! कई हज़ार वर्षो की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्वजन्म का शरीर एक दम क्षीण हो गया ! उनकी यह दश देखकर उनकी माँ मैना अत्यंत दुखी हो उठी ! उन्होंने उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए  आवाज दी - उमा नहीं , अब नहीं ! तब से देवी ब्रह्मचारिणी का नाम उमा भी पड़ गया ! उनकी इस तपस्या से तीनो लोको में हाहाकार मच गया ! देवता , ऋषि , मुनि , सिद्ध्गन सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूत पूर्व पुन्यकृत बताते हुए उनकी सराहना तथा गुणगान करने लगे ! अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा - हे देवी आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी ! ऐसी तपस्या तुम्ही से संभव थी ! तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चारों दिशाओं में जय जयकार हो रही है ! तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी ! भगवान् शिव जी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे ! अब तुम अपनी तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ ! शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हे बुलाने आ रहे हैं ! माँ दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरुप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है ! इनकी पूजा - उपासना से मनुष्य में तप , त्याग , वैराग्य , सदाचार , संयम , पर उपकार की वृद्धि होती हैं ! जीवन के कठिन समय में भी विचलित नहीं होते ! माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्ध और विजय की प्राप्ति होती हैं ! माँ भगवती देवी ब्रह्मचारिणी माता के श्री चरणों में सत सत नमन !

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