श्राद्ध पक्ष – 5 से 19 सितम्बर 2017
गरुड पुराण में आता है कि “समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दु:खी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है।
पूज्य बापूजी बताते हैं, “श्राद्ध के दिनों में मंत्र पढ़कर हाथ में तिल, अक्षत व जल लेकर संकल्प करते हैं तो मंत्र के प्रभाव से पितरों को तृप्ति होती है, उनका अंत:करण प्रसन्न होता है तथा कुल-खानदान में पवित्र आत्माएँ आती हैं।“
“बाबाजी! हम श्राद्ध यहाँ करें तो पितृलोक में वह कैसे पहुँचेगा?”
“जैसे मनीऑर्डर करते हैं और पता सही लिखा होता है तो मनीऑर्डर पहुँच जाता है, ऐसे ही जिसका श्राद्ध करते हो उसके कुल-गोत्र का नाम लेकर तर्पण करते हो कि ‘आज हम इनके निमित्त श्राद्ध करते हैं’ तो उन तक पहुँच जाता है। देवताओं और पितरों के पास यह शक्ति होती है कि दूर होते हुए भी हमारे भाव व संकल्प स्वीकार करके वे तृप्त हो जाते हैं। मंत्र व सूर्य की किरणों के द्वारा तथा ईश्वर की नियति के अनुसार वह आंशिक सूक्ष्म भाग उन तक पहुँच जाता है।“
“महाराज! यहाँ खिलायेँ तो वहाँ कैसे मिलता है?”
“भारत में रूपये जमा करा दें तो अमेरिका में डॉलर और इंग्लैंड में पाउंड होकर मिलते हैं। जब यह मानवीय सरकार, वेतन लेने वाले ये कर्मचारी तुम्हारी मुद्रा (करेंसी) बादल सकते हैं तो ईश्वर की प्रसन्नता के लिये जो प्रकृति काम करती है, वह ऐसी व्यवस्था कर दे तो इसमें ईश्वर व प्रकृति के लिये क्या बड़ी बात है! इस बात में संदेह नहीं करना चाहिये।“
स्वधा देवी पितरों को तृप्त करने में सक्षम है तो उन देवी के लिये यह मंत्र उच्चारण करना चाहिये। श्राद्ध करते समय 3 बार यह मंत्र बोलने से श्राद्ध फलित होता है:-
“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा।“
सर्वपित्री दर्श अमावस्या (19 सितम्बर) के दिन विभिन्न स्थानों पर संत श्रीआशारामजी बापू आश्रमों में “सामूहिक श्राद्ध” का आयोजन किया जाता है जिसमें कोई भी सहभागी हो सकता है।
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