Wednesday, 20 September 2017

21-September - Atma Sakshatkar Diwas

21 सितम्बर – पूज्य संतश्री आशारामजी बापू का आत्मसाक्षात्कार दिवस।


मुंडकोपनिषद् में आता है: “स यो ह वै तत्परमं ब्रह्म वेद ब्रह्मैव भवति........अर्थात् “निश्चय ही जो कोई भी उस परब्रहम परमात्मा को जान लेता है वह ब्रह्म ही हो जाता है।“ संत ज्ञानेश्वर महाराज स्थितप्रज्ञ पुरुष की महानता बताते हुए कहते हैं: “जो आत्मज्ञान से संतुष्ट व परमानन्द से पुष्ट हो गये हों, उन्हीं को सच्चे स्थितप्रज्ञ जानो। ये अहंकार का मद दूर कर देते हैं, सब प्रकार की कामनाओं को त्याग देते हैं और स्वयं विश्वरूप होकर संसार में विचरण करते हैं।“

स्वामी शिवानंद कहते हैं: “जीवनमुक्त महापुरुष आध्यात्मिक शक्ति के भंडार होते हैं। वे संसार की भिन्न-भिन्न दिशाओं में आध्यात्मिक शक्ति की धाराएँ अथवा लहरें भेजते रहते हैं। उनकी शरण में जाइये, आपके संशय स्वयं निवृत्त हों जायेंगे। आप उनकी उपस्थिति में एक विशेष प्रकार के आनंद व शांति का अनुभव करेंगे।“

आत्मसाक्षात्कार क्या है? अपने आप को आत्मस्वरूप जानना ही आत्मसाक्षात्कार है। परब्रह्म परमात्मा अर्थात् अपनी आत्मा को ज्यों का त्यों जान लेना ही वास्तव में जानना है बाकी सब तो सूचनाएँ इकट्ठी करना है। भगवद्गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: “मनुष्याणाम् सहस्त्रेषु.........करोड़ों मनुष्यों में कोई विरला ही परमात्म प्राप्ति अर्थात् आत्मसाक्षात्कार करता है।“

इस घोर कलिकाल में ऐसे महापुरुष धरती पर कभी कभार ही अवतरित होते हैं। पूज्य संतश्री आशारामजी बापू इन्हीं महापुरुषों में से एक हैं। अब ऐसे महापुरुषों को पहचानने के लिये ऊँची समझ, ऊँची दृष्टि, ऊँचा ज्ञान चाहिये परन्तु कलयुग में होती है उल्लुओं की भरमार। किसी उल्लू ने सब उल्लुओं को इकट्ठा करके प्रस्ताव पास कर दिया कि “सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता तो क्या सूर्य का अस्तित्व मिट जायेगा?”

ऐसे ही जब-जब महापुरुष धरती पर आये, उनको अनेक यातनाएं दी गईं, बिना कारण कठोर दण्ड दिये गये मगर वो मुस्कुराते रहे, ईश्वरीय मस्ती में झूमते रहे व लोक कल्याण करते रहे। यही है आत्मसाक्षात्कार का वास्तविक स्वरूप।

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