Tuesday, 2 October 2018

सर्वपित्री दर्श अमावस्या - 8 अक्टूबर

"सामूहिक श्राद्ध"


स्थान : संतश्री आशारामजी बापू आश्रम,

गीता कुटीर के पास, हरिपुरकलां,

हरिद्वार, उत्तराखण्ड - 249205

"जो श्रद्धा से दिया जाये उसे 'श्राद्ध' कहते हैं। श्रद्धा व मंत्र के मेल से जो विधि की जाती है वह श्राद्ध कहलाती है। जीवात्मा का अगला जीवन पिछले संस्कारों से बनता है। अत: श्राद्ध करके यह भावना की जाती है कि उसका अगला जीवन अच्छा हो। जिन पित्तरों के प्रति हम कृतज्ञतापूर्वक श्राद्ध करते हैं वे हमारी सहायता करते हैं।"

वायु पुराण में आत्मज्ञानी सूतजी ऋषियों से कहते हैं : "हे ऋषिवृंद ! परमेष्ठि ब्रह्मा ने पूर्वकाल में जिस प्रकार की आज्ञा दी है उसे सुनो। ब्रह्माजी ने कहा है : "जो लोग मनुष्यलोक के पोषण की दृष्टि से श्राद्ध आदि करेंगे, उन्हें पितृगण सर्वदा पुष्टि एवं संतति देंगे। श्राद्धकर्म में अपने प्रपितामह तक के नाम व गोत्र का उच्चारण कर जिन पित्तरों को कुछ दे दिया जायेगा वे उस श्राद्ध दान से अति संतुष्ट होकर देने वाले की संततियों को संतुष्ट रखेंगे, शुभ आशीष तथा विशेष सहाय देंगे। हे ऋषियों ! उन्हीं पित्तरों की कृपा से दान, अध्ययन, तपस्या आदि सबमें सिद्धि प्राप्त होती है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वे पितृगण ही हम सबको सत्प्रेरणा प्रदान करने वाले हैं।"
          

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