"हिन्दू संतों ने दिये ऐसे संस्कार,विश्व का हो रहा बेड़ा पार।
पर षड्यन्त्र हैं रोज तैयार,सन्त हो रहे उनका शिकार।।"
"बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" पर विश्वास करने वाली भारतीय संस्कृति के संस्कारों का लाभ तो पूरा विश्व ले रहा है मगर यह भी उतना ही सत्य है कि इस संस्कृति की जड़ें खोदने वाले अपने कुकृत्यों से बाज़ नहीं आ रहे। उनका हाल तो ऐसा है कि पेड़ की जिस डाली पर बैठे हैं उसी को काटने में लगे हैं। पराकाष्ठा है मूर्खता की। पूज्य बापूजी कहते हैं, "कुल्हाड़ी जिस पेड़ को काटती है वह उसी पेड़ से बनती है।" जिन हिन्दू संतों की देनी का कोई हिसाब नहीं है उन्हीं पर इतना जुल्म! कैसी विडम्बना है?
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