नाग पंचमी - 27 जुलाई
हमारे देश
की सनातन संस्कृति
ने विश्व को
कल्याण का मार्ग ही
नहीं बताया बल्कि ‘वसुधैव
कुटुम्बकम्' का सूत्र देकर
सिर्फ मानव के प्रति
ही नहीं वरन्
प्राणी मात्र से प्रेम
करने की प्रेरणा दी
है । ‘नाग
पंचमी' का पर्व इसका
प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
इस पर्व पर
नागों की पूजा की
जाती हैं । पुराणों
में इसकी अनेक कथाएँ
मिलती हैं ।
‘नाग पंचमी' मनाने
का चाहे जो
भी कारण हो,
किंतु यह पर्व इस
बात को तो पूर्ण
रूप से स्पष्ट करता
है कि हमारी
संस्कृति समग्र विश्व को
कुटुम्ब मानकर हसक प्राणियों
के प्रति भी
वैर वृत्ति न रखने
की, उनके प्रति सद्भाव
जगाने की तथा उन्हें
अभयदान देने की ओर
संकेत करती है ।
भगवान शंकर के गले
में सर्प तथा भगवान
विष्णु की शैया का
शेषनाग इसी बात का
प्रमाण है कि जो
महापुरुष सभी प्राणियों में
अपनी आत्मा को निहारता
है, सर्प जैसे विषैले
जीव भी उसके मित्र
हो जाते हैं
।
सर्प जैसे
जहरीले प्राणी को भी
देवताओं का स्थान देकर
प्रेम तथा भक्ति-भाव
से उसकी पूजा
करना-यह भारतीय संस्कृति
तथा ऋषि-मुनियों की
ही देन है
।
राग-द्वेष,
तथा विनाश की ओर
दौड़ते इस विश्व में
ऐसे पर्वों के माध्यम
से भी जो
शांति एवं प्रेम कायम
है वह इस
देश की सनातन संस्कृति
तथा भारत के संतों
के इसी प्रेम
का ही प्रभाव
है ।
(लोक कल्याण सेतु : जुलाई
१९९८)
Watch Param Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu Satsang : Naag Panchami Ka Rahasya ( नाग पंचमी का रहस्य )
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