Wednesday, 5 July 2017

Pearls of Wisdom by Pujya Asharam Ji Bapu

“जिसने आत्मा को अपने ही स्वरूप से जान लिया, उसकी बस आत्मा में ही प्रीति, आत्मा में ही तृप्ति व आत्मा में ही संतुष्टि होती है। वह कृतकृत्य हो जाता है। उसको कुछ करना शेष नहीं रहता है, कुछ पाना शेष नहीं रहता है। आत्मा को जानने से कुछ भी अप्राप्त नहीं रहता। आत्मा तो अमृतरूप है। आत्मा की मृत्यु तो होती ही नहीं फिर मृत्यु से बचने के लिये और अमरत्व की प्राप्ति के लिये कौन सा कर्म करना है? अमरत्व तो नित्य प्राप्त ही है। कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, कोई जटिल साधन करने की जरूरत नहीं। वह तो अपना आपा ही है, जो स्वयं ज्ञानस्वरूप है परम प्रकाशरूप है”

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