SantShri Asharamji Bapu Ashram, Haridwar
wishes you all
"A Very Happy & Enlightened GuruPurnima - 2017."
“गुरुपूर्णिमा उत्सव” पूर्णता की खबर लाने वाला उत्सव है। इस व्रत में सद्गुरु पूजन किये बिना शिष्य अन्न नहीं खाता। शारीरिक पूजन करने का अवसर नहीं मिलता तो मन से ही पूजन कर लेता है। षोडशोपचार से पूजा करने का जो पुण्य होता है उससे कई गुना ज्यादा मानस पूजा का पुण्य कहा गया है। वह सतशिष्य सद्गुरु की मानस पूजा कर लेता है।
“भावे हि विद्यते देव:।“
लोहे की, काष्ठ या पत्थर की मूर्ति में देव नहीं, तुम्हारा भाव ही तो देव है। सतशिष्य अपने सद्गुरु को मन ही मन पवित्र तीर्थों के जल से नहलाता है। वस्त्र पहनाता है, तिलक करता है व पुष्पों की माला अर्पित करता है।
“ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति: पूजामूलं गुरो: पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा।।“
गुरु, आचार्य आदि सब अपनी – अपनी जगह पर आदर करने योग्य हैं लेकिन सद्गुरु तो सदैव पूजने योग्य हैं। सत्य का जिनको ज्ञान हो गया, परमात्मा का जिनको अपने हृदय में साक्षात्कार हो गया वे सद्गुरु हैं। सद्गुरु का पूजन, सद्गुरु का आदर, ज्ञान व शाश्वत अनुभव का आदर है, मुक्ति का आदर है, अपने जीवन का आदर है।
- परम पूज्य संत श्रीआशारामजी बापू की अमृत वाणी
No comments:
Post a Comment