Saturday, 26 June 2021

वटसावित्री पूर्णिमा

आज वटसावित्री पूर्णिमा के अवसर पर संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में साध्वी रेखा दीदी के सत्संग का आयोजन किया गया । पूज्य बापूजी के संस्मरणों के साथ ही, भजनानंदी साधकों के अनुभवों का लाभ भी सभी को मिला । 

YouTube: https://www.youtube.com/ashramharidwarofficial

Facebook: https://www.facebook.com/AshramHaridwar/

Twitter: https://twitter.com/AshramHaridwar/

Blog: http://ashramharidwar.blogspot.in/

SoundCloud: https://soundcloud.com/ashramharidwar







Friday, 18 June 2021

गंगा दशहरा - 20 जून

गंगा पापं शशि तापं दैन्यम् कल्पतरुस्तथा ।

पापं तापं च दैन्यम् च हन्ति साधु समागमः ।।

शास्त्रों में संगति की महिमा बताते हुए कहा गया है कि गंगा स्नान से पाप, चन्द्रमा के दर्शन से ताप (गर्मी) एवं कल्पवृक्ष का दर्शन दरिद्रता को दूर करता है परन्तु संतजनों की संगति से पाप, ताप और दरिद्रता तीनों ही दूर हो जाते हैं ।

किसी संत से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि भगवान कृष्ण सदैव मुस्कुराते क्यों रहते थे । उन्होंने बहुत ही सुंदर उत्तर दिया । संतश्री ने कहा क्योंकि वह निर्देशक थे । उन्हें सदैव यह पता रहता था कि आगे क्या होने वाला है । पूरी फिल्म ही उनके द्वारा निर्देशित की हुई थी । इसलिए उन्हें कुछ प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।

महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ना तो कौरवों के पक्ष में थे और ना ही पांडवों के। भगवान तो थे केवल धर्म के पक्ष में। उनका अवतरण ही धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए होता है। भगवान ने तो बहुत प्रयास किया कि युद्ध ना हो, उन्हें भारी विनाश दिखाई दे रहा था, इसीलिए वह कौरवों के पास शांति प्रस्ताव लेकर गए परंतु उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया । आज के परिप्रेक्ष्य में भी यह बात बिलकुल सटीक बैठती है । इस समय भी जो महाभारत चल रही है, वो वास्तव में धर्म व अधर्म का ही युद्ध है । इसका स्वरूप जरूर बदला हुआ है क्योंकि युग अलग है ।

इस महाभारत में सद्गुरू रूपी भगवान जानते हैं कि जो कुछ भी चल रहा है इसका परिणाम क्या है । जैसे पांडव व कौरव दोनों ही भगवान के लिए बराबर थे, उसी तरह सद्गुरू के लिए भी सब बराबर हैं । फर्क है तो सिर्फ अपने कर्मों का । पांडव भगवान के अनुसार चले तो बचे रहे परंतु कौरव विपरीत चले और विनाश को प्राप्त हुए । इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है । भगवान का तो अर्थ ही है धर्म । अंततः जीत धर्म की ही होनी है, अधर्म चाहे कितना भी जोर लगा ले ।