14 नवम्बर - गुरु नानक जयंती / कार्तिक पूर्णिमा
जप, ध्यान, गंगास्नान तथा मंदिर, पीपल के वृक्ष, तुलसी के पौधों के पास व गंगाजी में दीपदान का अक्षय फल। सभी लाभ अवश्य लें।
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से:-
" और हृदय-परिवर्तन हो गया.......
चाहे कोई विश्व का चक्रवर्ती सम्राट ही क्यों न हो किन्तु इस जहाँ से तो उसे भी खाली हाथ ही जाना है ।
"सिकंदर दारा हल्या वया सोने लंका वारा हल्या वया ।
कारुन खजाने जा मालिक हथे खाली विचारा हल्या वया।।"
‘सारे विश्व पर राज्य करने का स्वप्न देखनेवाला सिकंदर न रहा, जिसके पास सोने की लंका थी, वह रावण भी न रहा, बहुत बड़े खजाने का मालिक कारुन भी न रहा । ये सब इस जहाँ से खाली हाथ ही चले गये ।’
कारुन बादशाह तो इतना जालिम था कि उसने कब्रों तक को नहीं छोड़ा, कर-पर-कर लगाकर प्रजा का खून ही चूस लिया था । आखिर जब देखा कि प्रजा के पास अब एक भी चाँदी का रुपया नहीं बचा है, तब उसने घोषणा कर दी कि ‘जिसके पास चाँदी का एक भी रुपया होगा उसके साथ मैं अपनी बेटी की शादी कर दूँगा ।’
बादशाह की यह घोषणा सुनकर एक युवक ने अपनी माँ से कहा :
‘‘अम्माजान ! कुछ भी हो एक रुपया दे दे ।’’
माँ : ‘‘बेटा ! कारुन बादशाह के राज में किसीके पास रुपया ही कहाँ बचा है, जो तुझे एक रुपया दे दूँ ? तू खाना खा ले, मेरे लाल !’’
युवक : ‘‘अम्माजान ! मैं खाना तभी खाऊँगा जब तू मुझे एक रुपया दे देगी । मैं शहजादी के बिना नहीं जी सकता ।’’
हकीकत तो यह है कि परमात्मा के बिना कोई जी नहीं सकता है लेकिन बेवकूफी घुस जाती है कि ‘मैं प्रेमिका के बिना नहीं जी सकता... मैं शराब के बिना नहीं जी सकता...’
एक दिन, दो दिन, तीन दिन बेटा भूखा रहा... माँ ने छाती पीटी, सिर कूटा किंतु लड़का टस-से-मस न हुआ । अब माँ का हृदय हाथ में कैसे रहता ? माँ ने अल्लाहताला से प्रार्थना की । प्रार्थना करते-करते माँ को एक युक्ति सूझी । उसने बेटे से कहा :
‘‘मेरे लाल ! तू तीन दिन से भूखा मर रहा है । हठ पकड़कर बैठ गया है । कारुन ने किसीके पास एक रुपया तक नहीं छोड़ा है । फिर भी मुझे याद आया कि तेरे अब्बाजान को दफनाते समय उनके मुँह में एक रुपया रखा था । अब जब तू अपनी जान कुर्बान करने को ही तैयार हो गया है तो जा, अपने अब्बाजान की कब्र खोदकर उनके मुँह से एक रुपया निकाल ले और कारुन बादशाह को दे दे ।’’
कारुन ने अपने अब्बाजान की कब्र खोदकर एक रुपया लानेवाले लड़के को अपनी कन्या तो नहीं दी बल्कि सारे कब्र खुदवाये और मुर्दों के मुँह में पड़े हुए रुपये निकलवा लिये । कब्रों में पड़े हुए मुर्देबेचारे क्या बोलें ? यदि कोई हिन्दू राजा ऐसा करता तो उसे न मुसलमान बादशाह ही बख्सते न हिन्दू राजा ही क्षमा करते ।
कैसा लोभी और जालिम रहा होगा कारुन !
गुरु नानक को इस बात का पता चला । उन्होंने कारुन की इस बेवकूफी को दूर करने का मन-ही-मन निश्चय कर लिया और विचरण करते-करते कारुन के महल के पास अपना डेरा डाला ।
लोग नानकजी के पास मत्था टेकने आते । पुण्यात्मा-धर्मात्मा, समझदार लोग उनके अमृतवचन सुनकर शांति पाते । धीरे-धीरे उनका यश चतुर्दिक् प्रसरित होने लगा । कारुन को भी हुआ कि ‘चलो, किसी पीर-फकीर की दुआ मिले तो अपना खजाना और बढ़े ।’ वह भी मत्था टेकने आया ।
आत्मारामी संत-फकीर तो सभीके होते हैं । जो लोग बिल्कुल नासमझ होते हैं वे ही बोलते हैं कि ‘ये फलाने के महाराज हैं ।’ वरना संत तो सभी के होते हैं । जैसे गंगा का जल सबके लिए है, वायु सबके लिए है, सूर्य का प्रकाश सबके लिए समान है, ऐसे ही संत भी सबके लिए समान ही होते हैं ।
कारुन बादशाह नानकजी के पास आया । नानकजी को मत्था टेका । नानकजी ने उसको एक टका दे दिया और कहा : ‘‘बादशाह सलामत के लिए और कोई सेवा नहीं है केवल इस एक टके को सँभालकर रखना । (पहले के जमाने में एक रुपये में 16 आने होते थे । टका मतलब आधा आना - आज के करीब 3 पैसे ।) जब मुझे जरूरत पड़ेगी तब तुमसे ले लूँगा और हाँ, यहाँ तो मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं पड़ेगी किन्तु मरने के बाद जब तुम परलोक में मिलोगे तब दे देना । मेरी यह अमानत सँभालकर रखना ।’’
कारुन : ‘‘महाराज ! मरने के बाद आपका टका मैं कैसे ले जाऊँगा ?’’
नानकजी : ‘‘क्यों ? इसमें क्या तकलीफ है? तुम इतने खजानों को तो साथ ले ही जाओगे । प्रजा का खून चूसकर और ढेर सारी कब्रें खुदवाकर तुमने जो खजाना एकत्रित किया है उसे तो तुम ले ही जाओगे, उसके साथ मेरा एक टका उठाने में तुम्हें क्या कष्ट होगा ? भैया ! पूरा ऊँट निकल जाय तो उसकी पूँछ क्या डूब सकती है ?’’
कारुन : ‘‘महाराज ! साथ में तो कुछ नहीं जायेगा । सब यहीं धरा रह जायेगा ।’’
नानकजी : ‘’इतना तो तुम भी समझते हो कि साथ में कुछ भी नहीं जायेगा । फिर इतने समझदार होकर कब्रें तक खुदवाकर खजाने में रुपये क्यों जमा किये ?’’
नानकजी की कृपा और शुभ संकल्प के कारण कारुन का हृदय बदल गया ! उसने खजाने के द्वार खोले और प्रजा के हित में संपत्ति को लगा दिया ।
जिसने कब्र तक से पैसे निकलवा लिये ऐसे कारुन जैसे का भी हृदय परिवर्तित कर दिया नानकजी ने !
(ऋषि प्रसाद : जून 2002)
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