Sunday, 11 September 2016

गुरु की सेवा साधू जाने, गुरु सेवा क्या मूढ़ पिछाने।

गुरु के प्रति अदा की हुई सेवा आध्यात्मिक टॉनिक है। उससे मन व हृदय दैवी गुणों से भरपूर होते हैं, पुष्ट होते हैं। सन्त कहते भी हैं, " गुरु की सेवा साधू जाने, गुरु सेवा क्या मूढ़ पिछाने।"

ईमानदारी पूर्वक सच्चे हृदय से की गयी सेवा अक्षय फल देती है। दूसरों को नीचा दिखाने के लिये की गयी सेवा अथवा द्वेषपूर्ण सेवा हृदय की अशांति उत्पन्न करती है। कपट रहित सेवा सौभाग्य के द्वार खोल देती है।

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