Monday, 27 February 2017

H. H. Asharam Bapu Ji Leela - Ashram Brahmpuri Rishikesh (योगी कथा अमृत)

पूज्य संतश्री आशारामजी बापू के सत्संग अमृत से एक प्रेरक प्रसंग:-

"धर्म के धन का कभी भी दुरूपयोग नहीं होना चाहिये। धर्म के धन के दुरुपयोग से, दुरुपयोग करने वाले की सात - सात पीढ़ियाँ बर्बाद हो जाती हैं। "


Sunday, 26 February 2017

MahaShivaratri Mantra Jap at Ashram Haridwar

संतश्री आशाराम बापू जी आश्रम हरिद्वार में 

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर पूजन,हवन,कीर्तन

 व महामृत्युंजय मंत्र के सामूहिक जप 

के साथ रात्रि जागरण।

Friday, 24 February 2017

24 February - MahaShivratri

24 फरवरी - महाशिवरात्रि

शिवरात्रि के दिन की शुरुआत यह श्लोक बोलकर करें:-
"देव देव महादेव नीलकंठ नमोस्तुते।
कर्तुम इच्छा म्याहम प्रोक्तं, शिवरात्रि व्रतं तव।।"



शिवरात्रि की रात 'ॐ नमः शिवाय' जप का महत्व :-
शिवजी का पत्रम-पुष्पम् से पूजन करके मन से मन का संतोष करें, फिर ॐ नमः शिवाय.... ॐ नमः शिवाय.... शांति से जप करते जायें। इस जप का बड़ा भारी महत्त्व है। वैसे तो इस मंत्र की महिमा अपार है परन्तु शिवरात्रि की रात 'ॐ नमः शिवाय' जप का महत्व लाख गुना बढ़ जाता है। अगर वायु-संबंधी बीमारी हैं तो 'बं बं बं बं बं' सवा लाख जप करने से अस्सी प्रकार की वायु-संबंधी बीमारियाँ गायब हो जाती हैं।

ॐ नमः शिवाय मंत्र तो सब बोलते हैं लेकिन इसका छंद कौन सा है, इसके ऋषि कौन हैं, इसके देवता कौन हैं, इसका बीज क्या है, इसकी शक्ति क्या है, इसका कीलक क्या है – यह बता रहे हैं पूज्य बापूजी:-
अथ ॐ नमः शिवाय मंत्र। वामदेव ऋषिः। पंक्तिः छंदः। शिवो देवता। ॐ बीजम्। नमः शक्तिः। शिवाय कीलकम्।
अर्थात् 'ॐ नमः शिवाय' का कीलक है 'शिवाय', 'नमः' है शक्ति, ॐ है बीज... हम इस उद्देश्य से (मन ही मन अपना उद्देश्य बोलें) शिवजी का मंत्र जप रहे हैं – ऐसा संकल्प करके जप किया जाय तो उसी संकल्प की पूर्ति में मंत्र की शक्ति काम देगी।

"आत्मशिव से मुलाकात"
आशाराम बापूजी कहते हैं, "शिवरात्रि का जो उत्सव है वह तपस्या प्रधान उत्सव है, व्रत प्रधान उत्सव है | यह उत्सव मिठाइयाँ खाने का नहीं, सैर-सपाटा करने का नहीं बल्कि व्यक्त में से हटकर अव्यक्त में जाने का है, भोग से हटकर योग में जाने का है, विकारों से हटकर निर्विकार शिवजी के सुख में अपने को डुबाने का उत्सव है।"

'महाभारत' में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को शिव-महिमा बताते हुए कहते हैं - "तत्त्वदृष्टि से जिनकी मति सूक्ष्म है और जिनका अधिकार शिवस्वरूप को समझने में है वे लोग शिव का पूजन करें, ध्यान करें, समत्वयोग को प्राप्त हो नहीं तो शिव की मूर्ति का पूजन करके हृदय में शुभ संकल्प विकसित करें अथवा शिवलिंग की पूजा करके अपने शिव-स्वभाव को, अपने कल्याण स्वभाव को, आत्मस्वभाव को जाग्रत करें।"

मनुष्य जिस भाव से, जिस गति से परमात्मा का पूजन, चिंतन, धारणा, ध्यान करता है उतना ही उसकी सूक्ष्म शक्तियों का विकास होता है और वह स्थूल जगत की आसक्ति छोड़कर सूक्ष्म,सूक्ष्मतर,सूक्ष्मतम स्वरूप परमात्मा शिव को पाकर इहलोक एवं परलोक को जीत लेता है।

इहलोक और परलोक में ऐंद्रिक सुविधाएँ हैं, शरीर के सुख हैं लेकिन अपने को ‘स्व’ के सुख में पहुँचाये बिना शरीर के सुख बे-बुनियाद हैं और अस्थायी हैं | अनुकूलता का सुख तुच्छ है, आत्मा का सुख परम शिवस्वरूप है, कल्याणस्वरूप है। जो प्रेम परमात्मा से करना चाहिए वह किसी के सौंदर्य से किया तो प्रेम द्वेष में बदल जायेगा, सौंदर्य ढल जायेगा या तो सौंदर्य ढलने के पहले ही आपकी प्रीति ढल जायेगी | जो मोहब्बत परमात्मा से करनी चाहिए वह अगर हाड़-मांस के शरीर से करोगे तो अपना और जिससे मोहब्बत करते हो उसका,दोनों का अहित होगा।

जो विश्वास भगवान पर करना चाहिए, वह विश्वास अगर धन पर करते हो तो धन भी सताता है | इसलिए अपने ऊपर कृपा कीजिये, अब बहुत समय बीत गया |

जैसे पुजारी ब्राह्मण लोग अथवा भक्तगण भगवान शिव को पंचामृत चढ़ाते हैं, ऐसे ही आप पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश – इन पंचभूतों से बने हुए पंचभौतिक पदार्थों का आत्मशिव की प्रसन्नता के लिए सदुपयोग करें और सदाचार से जीयें तो आपकी मति सत्-चित्-आनन्दस्वरूप शिव का साक्षात्कार करने में सफल हो जायेगी।

जो पंचभूतों से मिश्रित जगत में कर्ता और भोक्ता का भाव न रखकर परमात्मशिव के संतोष के लिए तटस्थ भाव से पक्षपात रहित, राग-द्वेष रहित भाव से व्यवहार करता है वह शिव की पूजा ही करता है |

पंचभूतों को सत्ता देने वाला यह आत्मशिव है। उसके संतोष के लिए, उसकी प्रसन्नता के लिए जो संयम से खाता पीता, लेता-देता है, भोग-बुद्धि से नहीं निर्वाह बुद्धि से जो करता है उसका तो भोजन करना भी पूजा हो जाता है।

कालरात्रि, महारात्रि, दारूणरात्रि, अहोरात्रि ये जो रात्रियाँ हैं, ये जो पर्व हैं इन दिनों में किया हुआ ध्यान, भजन, तप, जप अनंतगुना फल देता है | जैसे किसी चपरासी को एक गिलास पानी पिला देते हो, ठीक है, वो बहुत-बहुत तो आपकी फाइल एक मेज से दूसरे मेज तक पहुँचा देगा, किन्तु तुम्हारे घर पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पानी का प्याला पी लेता है तो उसका मूल्य बहुत हो जाता है | इसलिए पद जितना-जितना ऊँचा है उनसे संबंध रखने से उतना ऊँचा लाभ होता है | ऊँचे-में-ऊँचा सर्वराष्ट्रपतियों का भी आधार, चपरासियों का भी आधार, संत-साधु सबका आधार परमात्मा है, तुम परमात्मा के नाते अगर थोड़ा बहुत भी कर लेते हो तो उसका अनंत गुना फल होना स्वाभाविक है।

मन सुखी होता है, दुःखी होता है। उस सुख-दुःख को भी कोई सत्यस्वरूप देख रहा है, वह कल्याणस्वरूप तेरा शिव है, तू उससे मुलाकात कर ले।

जो शिवरात्रि को उपवास करना चाहे, जप करना चाहे वह मन ही मन शिवजी को कह दे :-
"देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु ते |
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव ||
तव प्रभावाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति |
कामाद्याः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि ||"

'देवदेव ! महादेव ! नीलकण्ठ ! आपको नमस्कार है | देव ! मैं आपके शिवरात्रि-व्रत का अनुष्ठान करना चाहता हूँ| देवेश्वर ! आपके प्रभाव से यह व्रत बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो और काम आदि शत्रु मुझे पीड़ा न दें |'(शिवपुराण, कोटिरूद्र संहिता अ. 37)

Thursday, 23 February 2017

Divine Love - Parivartan - A Must Watch Movie

"Bonding between parents & children"

Young generation! Don't miss the chance to watch #Parivartan_Film
(A worth seeing family film.) 

Tuesday, 21 February 2017

22 February - Vijaya Ekadashi


22 फरवरी - विजया एकादशी



युधिष्ठिर ने पूछा: हे वासुदेव! फाल्गुन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार माघ) के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका व्रत करने की विधि क्या है? कृपा करके बताइये ।


भगवान श्रीकृष्ण बोले: युधिष्ठिर ! एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होने वाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में उन्हें जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो :
ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है । यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।

त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था । उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा : ‘सुमित्रानन्दन ! किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है ? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है । मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके ।’

लक्ष्मणजी बोले : हे प्रभु ! आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं । आपसे क्या छिपा है? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं । आप उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये ।

श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया । महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा ।

श्रीरामचन्द्रजी बोले : ब्रह्मन् ! मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेना सहित यहाँ आया हूँ । मुने ! अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये ।

बकदाल्भय मुनि ने कहा : हे श्रीरामजी ! फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी । निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे ।

राजन् ! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये :-
दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें । उसके ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें । फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें । कलश को पुन: स्थापित करें । माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें । कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें । गन्ध, धूप, दीप और भाँति - भाँति के नैवेद्य से पूजन करें । कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें । अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें । फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप (नदी, झरने या पोखर के तट पर) स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमा सहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें । कलश के साथ ही और भी बड़े - बड़े दान देने चाहिए । श्रीराम ! आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये । इससे आपकी विजय होगी ।

ब्रह्माजी कहते हैं : नारद ! यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया । उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए । उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीताजी को प्राप्त किया । बेटा ! जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए । इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।

Sunday, 19 February 2017

Parivartan_TheFilm

"One more inspiration, One more effort#Parivartan_TheFilm 

Again a valuable contribution of 
H. H. Ashram Bapu Ji to the society.

Friday, 17 February 2017

Parents Worship Day Celebrations at H. H. Asharam Bapu Ji Ashram Haridwar

संत श्री आशाराम जी बापू आश्रम, हरिद्वार में 
“मातृ-पितृ पूजन” कार्यक्रम।




Wednesday, 15 February 2017

Parents Worship Day at Ashram Haridwar

Parents Worship Day celebrated at Sant Shri Asharam Bapu Ji, Ashram Haridwar, with "Parents-Children Divine Love." 

Leading newspapers covered this Mega Event.

Pradhan Times

Amar Ujala

Monday, 13 February 2017

14 February - Parents Worship Day - Pradhan Times Coverage


Everybody is waiting for this 
"GRAND FINALE
#Tomorrow_ParentsWorshipDay


So, don't forget to celebrate 14th February as "Parents Worship Day". Print Media is also publishing this "Classic Event".

Pradhan Times Coverage

Friday, 10 February 2017

Parents Worship Day at Haridwar

पृथ्वीराज चौहान पोस्ट ग्रैजुएट कॉलेज, हरिद्वार, उत्तराखंड में पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित “मातृ-पितृ पूजन” कार्यक्रम में स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने लिया भाग। 14th फरवरी को “Valentine's Day” की जगह “Parents Worship Day” का विकल्प विद्यार्थियों को खूब भाया।









Thursday, 9 February 2017

9 February - Gurupushyamrut Yog


9 फरवरी - सर्वसिद्धिकर गुरूपुष्यामृतयोग 
(सुबह 10:48 से 10 फरवरी सूर्योदय तक)

‘गुरुपुष्यामृत योग सर्वसिद्धिकर है । व्यापारिक कार्यों के लिए तो यह विशेष लाभदायी माना गया है। इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी। इस उत्तम योग का लाभ अवश्य लें। परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं ।


- पुष्टिप्रदायक पुष्य नक्षत्र का वारों में श्रेष्ठ बृहस्पतिवार (गुरुवार) से योग होने पर वह अति दुर्लभ ‘गुरुपुष्यामृत योग कहलाता है ।

- गुरुपुष्यामृत योग व्यापारिक कार्यों के लिए तो विशेष लाभदायी माना गया है ।

- गुरुपुष्यामृत योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है ।

- गुरुपुष्यामृत योग में विद्या एवं आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना शुभ होता है ।

- गुरुपुष्यामृत योग में कोई धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ करना शुभ होता है।

- गुरुपुष्यामृत योग में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं ।

Monday, 6 February 2017

Jaya Ekadashi


७ फरवरी - जया एकादशी



युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा : भगवन् ! कृपा करके यह बताइये कि माघ मास के शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी होती है, उसकी विधि क्या है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजेन्द्र ! माघ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘जया’ है । वह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। पवित्र होने के साथ ही पापों का नाश करने वाली तथा मनुष्यों को भाग और मोक्ष प्रदान करने वाली है। इतना ही नहीं , वह ब्रह्म हत्या जैसे पाप तथा पिशाचत्व का भी नाश करने वाली है । इसका व्रत करने पर मनुष्यों को कभी प्रेतयोनि में नहीं जाना पड़ता । इसलिए राजन् ! प्रयत्नपूर्वक ‘जया’ नाम की एकादशी का व्रत करना चाहिए ।

एक समय की बात है । स्वर्गलोक में देवराज इन्द्र राज्य करते थे । देवगण पारिजात वृक्षों से युक्त नंदनवन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे । पचास करोड़ गन्धर्वों के नायक देवराज इन्द्र ने स्वेच्छानुसार वन में विहार करते हुए बड़े हर्ष के साथ नृत्य का आयोजन किया । गन्धर्व उसमें गान कर रहे थे, जिनमें पुष्पदन्त, चित्रसेन तथा उसका पुत्र - ये तीन प्रधान थे । चित्रसेन की स्त्री का नाम मालिनी था । मालिनी से एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जो पुष्पवन्ती के नाम से विख्यात थी ।पुष्पदन्त गन्धर्व का एक पुत्र था, जिसको लोग माल्यवान कहते थे । माल्यवान पुष्पवन्ती के रुप पर अत्यन्त मोहित था। ये दोनों भी इन्द्र के संतोषार्थ नृत्य करने के लिए आये थे ।इन दोनों का गान हो रहा था । इनके साथ अप्सराएँ भी थीं । परस्पर अनुराग के कारण ये दोनों मोह के वशीभूत हो गये ।चित्त में भ्रान्ति आ गयी इसलिए वे शुद्ध गान न गा सके। कभी ताल भंग हो जाता था तो कभी गीत बंद हो जाता था। इन्द्र ने इस प्रमाद पर विचार किया और इसे अपना अपमान समझकर वे कुपित हो गये ।

अत: इन दोनों को शाप देते हुए बोले : ‘ओ मूर्खो ! तुम दोनोंको धिक्कार है ! तुम लोग पतित और मेरी आज्ञा भंग करने वाले हो, अत: पति पत्नी के रुप में रहते हुए पिशाच हो जाओ ।’

इन्द्र के इस प्रकार शाप देने पर इन दोनों के मन में बड़ा दु:ख हुआ। वे हिमालय पर्वत पर चले गये और पिशाच योनि को पाकर भयंकर दु:ख भोगने लगे। शारीरिक पातक से उत्पन्न ताप से पीड़ित होकर दोनों ही पर्वत की कन्दराओं में विचरते रहते थे । एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी पिशाची से कहा : ‘हमने कौन सा पाप किया है, जिससे यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है ? नरक का कष्ट अत्यन्त भयंकर है तथा पिशाच योनि भी बहुत दु:ख देने वाली है। अत: पूर्ण प्रयत्न करके पाप से बचना चाहिए ।’

इस प्रकार चिन्तामग्न होकर वे दोनों दु:ख के कारण सूखते जा रहे थे । दैवयोग से उन्हें माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि प्राप्त हो गयी । ‘जया’ नाम से विख्यात वह तिथि सब तिथियों में उत्तम है । उस दिन उन दोनों ने सब प्रकार के आहार त्याग दिये, जल पान तक नहीं किया । किसी जीव की हिंसा नहीं की, यहाँ तक कि खाने के लिए फल तक नहीं काटा । निरन्तर दु:ख से युक्त होकर वे एक पीपल के समीप बैठे रहे । सूर्यास्त हो गया । उनके प्राण हर लेने वाली भयंकर रात्रि उपस्थित हुई । उन्हें नींद नहीं आयी । वे रति या औरकोई सुख भी नहीं पा सके ।

सूर्योदय हुआ, द्वादशी का दिन आया । इस प्रकार उस पिशाच दंपति के द्वारा ‘जया’ के उत्तम व्रत का पालन हो गया । उन्होंने रात में जागरण भी किया था । उस व्रत के प्रभाव से तथा भगवान विष्णु की शक्ति से उन दोनों का पिशाचत्व दूर हो गया। पुष्पवन्ती और माल्यवान अपने पूर्वरुप में आ गये। उनके हृदय में वही पुराना स्नेह उमड़ रहा था। उनके शरीर परपहले जैसे ही अलंकार शोभा पा रहे थे।

वे दोनों मनोहर रुप धारण करके विमान पर बैठे और स्वर्गलोक में चले गये । वहाँ देवराज इन्द्र के सामने जाकर दोनों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया ।

उन्हें इस रुप में उपस्थित देखकर इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ ! उन्होंने पूछा: ‘बताओ, किस पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों का पिशाचत्व दूर हुआ है? तुम मेरे शाप को प्राप्त हो चुके थे, फिरकिस देवता ने तुम्हें उससे छुटकारा दिलाया है?’

माल्यवान बोला : स्वामिन् ! भगवान वासुदेव की कृपा तथा‘जया’ नामक एकादशी के व्रत से हमारा पिशाचत्व दूर हुआ है।

इन्द्र ने कहा : … "तो अब तुम दोनों मेरे कहने से सुधापान करो । जो लोग एकादशी के व्रत में तत्पर और भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत होते हैं, वे हमारे भी पूजनीय होते हैं ।"

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! इस कारण एकादशी का व्रत करना चाहिए । नृपश्रेष्ठ ! ‘जया’ ब्रह्महत्या का पाप भी दूर करने वाली है । जिसने ‘जया’ का व्रत किया है, उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया। इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।

Saturday, 4 February 2017

Save Saints Save Hinduism

"जिस देश में संतों का अनादर होता है उसे उसका मूल्य अपनी संस्कृति को खोकर चुकाना पड़ता है।"

विश्व हिन्दू परिषद् के मुख्य संरक्षक व पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंघलजी का कहना था कि भारतीय संस्कृति को मिटाने का बड़ा सुनियोजित षड्यंत्र चलाया जा रहा है। हमारे बड़े-बड़े महात्माओं व संगठनों के प्रमुखों को बदनाम करने के लिये उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर एवं गलत ढंग से पेश किया जा रहा है, जिससे उनके प्रति हमारी श्रद्धा समाप्त हो जाये और संस्कृति को तोड़ना आसान हो जाये।

धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिये हमें सच को जान कर, समझकर एक होना ही होगा और देश को बचाना ही होगा।

Thursday, 2 February 2017

3 February - Achala Saptami

3 फरवरी अचला सप्तमी तिथि: 

स्नान, व्रत करके गुरु का पूजन करने वाला सम्पूर्ण माघ मास के स्नान का फल व वर्ष भर के रविवार व्रत का पुण्य पा लेता है |

इसके व्रत से संतान , धन व आरोग्यता की प्राप्ति होती है । 

यह सम्पूर्ण पापों को हरनेवाली व सुख–सौभाग्य की वृद्धि करनेवाली है।

Wednesday, 1 February 2017

Basant Panchami - Saraswati Puja

1 फरवरी - बसंत पंचमी पर माँ सरस्वती का पूजन करें ।
" ॐ श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै नमः " का जप करें ।

Significance of Basant Panchami 
Satsang by H. D. H. Asharam Bapu Ji

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