7 नवम्बर - शुभ दीपावली
परम पूज्य संतश्री आशारामजी बापू बताते हैं कि दीपावली की रात्रि में किया गया जप-तप, ध्यान-भजन अनंत गुना फलदायक होता है। दीपावली के दिन लक्ष्मीजी क्षीरसागर से प्रकट हुईं थीं अत: दीपावली लक्ष्मीजी का प्राकट्य दिवस भी है। बापूजी लक्ष्मीप्राप्ति हेतु दीपावली से भाईदूज तक तीन दिन की बहुत ही सरल साधना भक्तों को बताते हैं जिससे कि दरिद्रता का विनाश व आजीविका का उचित निर्वाह हो सके।
लक्ष्मीप्राप्ति हेतु साधना:-
दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात् भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में दीपक एवं धूपबत्ती जलाकर (सम्भव हो तो गाय के गोबर से बनी धूपबत्ती), पीले वस्त्र पहनकर पश्चिम की तरफ मुँह करके बैठें। ललाट पर केसर का तिलक तथा स्फटिक मनकों से बनी माला द्वारा नित्य प्रात:काल निम्न मंत्र की दो मालायेँ जपें:-
"ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे,
अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् ॥"
तेल का दीपक व धूपबत्ती लक्ष्मीजी की बायीं ओर घी का दीपक दायीं ओर तथा नैवेध्य आगे रखा जाता है। लक्ष्मीजी को तुलसी व मदार या धतूरे का फूल नहीं चढ़ाना चाहिये इससे हानि होती है। घर में लक्ष्मीजी के वास, दरिद्रता के विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह हेतु यह साधना करने वाले पर लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं।
पूज्य बापुजी तथा आश्रमों द्वारा हर साल दीपावली के पावन पर्व पर पिछड़े हुए, गरीब आदिवासी क्षेत्रों में भंडारों का आयोजन किया जाता है। दरिद्र नारायण के बीच दीवाली मनाकर पूज्य बापूजी का हृदय अत्यंत प्रसन्न होता है। आईये देखते हैं कुछ झलकियाँ:-