Saturday, 1 October 2016

2 October - Atma Sakshatkar

2 अक्टूबर - संतश्री आशारामजी बापू आत्म साक्षात्कार दिवस

 

ऐसा होता है आत्मसाक्षात्कार - पूज्य बापूजी

 

आत्मसाक्षात्कार मतलब क्या ?

आत्मसाक्षात्कार मतलब जो सत् है, चित् है, आनंद है और साक्षात् है | कल्पित ‘मैं – मेरा’ ज्ञान द्वारा उड़ जाये और जो वास्तविक है, साक्षात् है, उसी में अपने ‘मैं’ का साक्षात्कार करोगे तो इनका अस्तित्व और अपने ‘मैं’ का अस्तित्व सब एकरूप दिखेगा | अर्जुन ने पूछा था : " स्थितप्रज्ञस्य का भाषा ...."
भगवान् श्रीकृष्ण बोले : " प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ ....."

 

‘हे अर्जुन ! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है |’ ( गीता :२.५५ )

 

बोले फिर तो जड़ हो जायेगा | नहीं, वह चैतन्य हो जायेगा ! आत्मसाक्षात्कार के बाद जड़ नहीं होता | जीवन जीने का मजा तो आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आता है, अन्यथा तो बैलगाड़ियों में बँधे बैल की तरह मजदूरी करके मरना है | साक्षात्कारी पुरुष की हाजरी मात्र से वातावरण आनंदित हो जाता है | जो श्रीकृष्ण में चम – चम चमकता है, भगवान शिव में समाधि – सुख देता है, माँ जगदम्बा में आदि शक्ति रूप से उभरता है, वही साँई लीलाशाहजी बापू में ज्ञान देता है और आशाराम में छुपा हुआ जागृत होता है, उसका नाम है आत्मसाक्षात्कार | यदि कोई केवल तीन मिनट के लिए आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में स्थित हो जाय तो उसका दुबारा जन्म नहीं होता, वह सदा के लिए जन्म - मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है| अरे ! मुक्त क्या होता है उसका यह अनुभव हो जाता है :-

 

" मुझे मेरी मस्ती कहाँ ले के आयी, जहाँ मेरे अपने सिवा कुछ नहीं है |
पता जब चला मेरी हस्ती का मुझको, सिवा मेरे अपने कहीं कुछ नहीं है ||"

 

अपने भूतकाल को याद कर – करके विचारों के जाल में कब तक फँसते रहोगे ? मन की मान्यताओं में कब तक उलझते रहोगे ? सब बंधनों को काटकर उठ खड़े हो, मुक्त हो जाओ | शरीर एवं मन के किले को छोडकर आत्मा के आकाश में विहार करो | ऐसा ज्ञान पा लो कि तुम जीते - जी ही काल से परे हो जाओ और काल सिर कूटता रह जाय | ऐसा ज्ञान पाना कठिन नहीं है किंतु लोगों को अज्ञान को छोड़ने में, अपनी मान्यताओं को तोड़ने में कठिनाई लगती है | अज्ञान और मान्यताओं में बहने की बेवकूफी सदियों की है अत: उसे छोड़ना कठिन लगता है| नहीं तो ईश्वर को पाने में क्या कठिनाई है ! ईश्वर तो अपना आत्मस्वरूप है |

 

आप बस अपना उद्देश्य बना लो !

ईश्वरप्राप्ति में जो सुख है और समाज का भला है उसकी बराबरी में कुछ नहीं है | अपने स्वरूप का, अपने आत्मा का पता चल जाना यह बड़े – में – बड़ी उपलब्धि है | इसके अतिरिक्त जगत की सारी उपलब्धियाँ दिखनेमात्र की हैं | ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में रोना ही पड़ेगा | भगवान को पाने की महत्ता समझ में आ जाये और भगवान को पाने का इरादा पक्का हो जाये तो आपकी ९५ प्रतिशत साधना हो गयी ! बाकी ५ प्रतिशत में ३ प्रतिशत आपकी भावना, श्रद्धा और २ प्रतिशत आपकी साधना | केवल उद्देश्य बना लो ईश्वरप्राप्ति का | बस हो गया.........।

 

“ पूर्ण गुरु कृपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान।
आसुमल से हो गये, साईं आशाराम।।“

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