Monday, 30 January 2017

31 January - Mangalwari Chaturthi

31 जनवरी मंगलवारी चतुर्थी 
(सूर्योदय से 1 फरवरी (प्रातः 3:41 तक)), माघ शुक्ल चतुर्थी ।

जप, तप, दान व ध्यान का अनंन्त गुना फल देने वाली तिथि।

समस्त पुण्य कर्मों का, सूर्यग्रहण के समान फल देने वाली, इस तिथि का अवश्य लाभ लें। 

Saturday, 28 January 2017

29th जनवरी – पूज्य नारायण साईं अवतरण दिवस

नारायण साईंजी के अवतरण से लेकर उनकी योगलीलाओं, बचपन, शिक्षा-दीक्षा, साधना, तपस्या, गुरुसेवा, सिद्धि और सत्संग-प्रवचनों के साथ ही समाजसेवा और मानव कल्याण के क्रिया कलापों का प्रमाणिक चित्रण :-


Pearls of Wisdom by H. D. H. Asharam Bapu Ji

अपने को कष्ट देकर भी दूसरों का मंगल करना यह तपस्या है और महापुरुषों का सहज स्वभाव है।


Friday, 27 January 2017

Mauni Amavasya


मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya) पर पूज्य बापूजी का सन्देश:


आज मौनी अमावस्या है, मौन से शक्ति बढती है | संसारी व्यवहार से जितना घाटा होता है, तो जप करने से उतना ही लाभ होता है | कई ऐसा मीडिया तो देवता है जो सत्संग की बातें पहुंचाता है, तोड़-मरोडके नहीं दिखाता | तोड़-मरोड़ नहीं करते तो मुझे तो बहुत प्यारे लगते हैं |

अमावस्या की रात जप-ध्यान करते करते सोना और आनंद में रहना | आत्मा अमर है, संसार स्वप्ना है और परमात्मा अपना है |








Monday, 23 January 2017

Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti

#Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti 

(23rd January)

Bengal's Tiger Netaji Subhas Chandra Bose Proud Of You! You Taught Us Dhriti, You Give Us Pride, Sato Namaskar To You!

It is our duty to pay for our liberty with our own blood"- #Netaji

Sunday, 22 January 2017

Shattila Ekadashi


षटतिला एकादशी - 23 January 2017


युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा: भगवन् ! माघ मास केकृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसके लिए कैसीविधि है तथा उसका फल क्या है ? कृपा करके ये सब बातेंहमें बताइये ।


श्रीभगवान बोले: नृपश्रेष्ठ ! माघ (गुजरात महाराष्ट्र केअनुसार पौष) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ केनाम से विख्यात है, जो सब पापों का नाश करनेवाली है ।मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने इसकी जो पापहारिणी कथा दाल्भ्य सेकही थी, उसे सुनो ।

दाल्भ्य ने पूछा: ब्रह्मन्! मृत्युलोक में आये हुए प्राणी प्राय: पापकर्म करते रहते हैं ।उन्हें नरक में न जाना पड़े इसके लिएकौन सा उपाय है? बताने की कृपा करें ।

पुलस्त्यजी बोले: महाभाग ! माघ मास आने पर मनुष्य कोचाहिए कि वह नहा धोकर पवित्र हो इन्द्रियसंयम रखते हुएकाम, क्रोध, अहंकार ,लोभ और चुगली आदि बुराइयों कोत्याग दे । देवाधिदेव भगवान का स्मरण करके जल से पैरधोकर भूमि पर पड़े हुए गोबर का संग्रह करे 

उसमें तिल औरकपास मिलाकर एक सौ आठ पिंडिकाएँ बनाये ।

फिर माघ मेंजब आर्द्रा या मूल नक्षत्र आये, तब कृष्णपक्ष की एकादशीकरने के लिए नियम ग्रहण करें ।

भली भाँति स्नान करकेपवित्र हो शुद्ध भाव से देवाधिदेव श्रीविष्णु की पूजा करें ।

कोई भूल हो जाने पर श्रीकृष्ण का नामोच्चारण करें ।

रात कोजागरण और होम करें ।

चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेघ आदिसामग्री से शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले देवदेवेश्वरश्रीहरि की पूजा करें ।

तत्पश्चात् भगवान का स्मरण करकेबारंबार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियलअथवा बिजौरे के फल से भगवान को विधिपूर्वक पूजकरअर्ध्य दें 

अन्य सब सामग्रियों के अभाव में सौ सुपारियों केद्वारा भी पूजनऔर अर्ध्यदान किया जा सकता है । अर्ध्य कामंत्र इस प्रकार है:

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव ।
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।
सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज ॥
गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।

‘सच्चिदानन्दस्वरुप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं । हमआश्रयहीन जीवों के आप आश्रयदाता होइये । हम संसारसमुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइये । कमलनयन ! विश्वभावन ! सुब्रह्मण्य ! महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपकोनमस्कार है ! जगत्पते ! मेरा दिया हुआ अर्ध्य आप लक्ष्मीजीके साथ स्वीकार करें ।’

तत्पश्चात् ब्राह्मण की पूजा करें ।उसे जल का घड़ा, छाता, जूता और वस्त्र दान करें ।दान करते समय ऐसा कहें : ‘इसदान के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों ।’ अपनीशक्ति के अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गौ का दान करें ।

द्विजश्रेष्ठ ! विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह तिल से भरा हुआपात्र भी दान करे ।

उन तिलों के बोने पर उनसे जितनीशाखाएँ पैदा हो सकती हैं, उतने हजार वर्षों तक वहस्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।

तिल से स्नान होम करे, तिलका उबटन लगाये, तिल मिलाया हुआ जल पीये, तिल का दानकरे और तिल को भोजन के काम में ले ।’

इस प्रकार हे नृपश्रेष्ठ ! छ: कामों में तिल का उपयोग करने केकारण यह एकादशी ‘षटतिला’ कहलाती है, जो सब पापों कानाश करनेवाली है ।


Saturday, 21 January 2017

Vishva Hindu Parishad celebrates Tulsi Pujan Divas


विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा मनाया गया “तुलसी पूजन दिवस।“


पूज्य संतश्री आशारामजी बापू ने 25 दिसम्बर को “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाये जाने की जो पहल की, उसका पूरे विश्व में खूब स्वागत हो रहा है। तुलसी के आध्यात्मिक महत्व के साथ - साथ इसके वैज्ञानिक व औषधीय गुण भी प्राणीमात्र के लिये बहुत ही लाभदायक हैं। भारतीय संस्कृति को फिर से जागृत करने में पूज्य बापूजी का यह एक और अनूठा योगदान है। 



Thursday, 12 January 2017

Magh Mass Vrata


सर्वफलदायक माघ मास - 12 जनवरी से 10 फरवरी ।
 
माघ मास में प्रात:काल (ब्रह्ममुहूर्त) का स्नान अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है। यह आयुष्य लंबा करता है, अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य व सदाचरण देता है। इससे वृत्तियाँ निर्मल होती हैं, विचार ऊँचे होते हैं। समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
 
पद्मपुराण में भगवान राम के गुरुदेव वशिष्ठजी कहते हैं कि "वैशाख में जलदान, अन्नदान उत्तम माना जाता है और कार्तिक में तपस्या, पूजा लेकिन माघ में स्नान, जप, होम और दान उत्तम माना गया है।"
- परम पूज्य संतश्री आशाराम बापूजी
 
 

Wednesday, 11 January 2017

Chaturdashi - Aadra Nakshatra Yog

चतुर्दशी - आद्रा नक्षत्र योग, "ॐ कार जप योग" - अक्षय फलदायी।
11 जनवरी 2017 - चतुर्दशी आद्रा नक्षत्र योग
(प्रातः 5:33 से रात्रि 7:53 तक)
 
ॐ कार जप की महिमा -
पूज्य #Asharam Bapu Ji की मधुर वाणी में। अवश्य देखें:
 

Sunday, 8 January 2017

Putrada Ekadashi - पुत्रदा एकादशी - 9 जनवरी 2017


युधिष्ठिर बोले: श्रीकृष्ण ! कृपा करके पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य बतलाइये । उसका नाम क्या है? उसे करने की विधि क्या है ? उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: राजन्! पौष मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम ‘पुत्रदा’ है। ‘पुत्रदा एकादशी’ को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।

चराचर जगतसहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।

पूर्वकाल की बात है, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम चम्पा था । राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ । इसलिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे । राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे । ‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा …’ यह सोच - सोचकर पितर दु:खी रहते थे ।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये । पुरोहित आदि किसीको भी इस बात का पता न था । मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे । मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । जहाँ-तहाँ भालू और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे । इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी । राजा को भूख और प्यास सताने लगी । वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे । शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा । उस समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था । सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे । उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक्-पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे । वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे । जब राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले : ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं।’

राजा बोले: आप लोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं? कृपया यह सब बताइये ।

मुनि बोले: राजन् ! हम लोग विश्वेदेव हैं । यहाँ स्नान के लिए आये हैं । माघ मास निकट आया है । आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा । आज ही ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है,जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है ।

राजा ने कहा: विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।

मुनि बोले: राजन्! आज ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो । महाराज! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया । प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ ।

इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए । मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है । जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।

Tuesday, 3 January 2017

Food for Thought by H. D. H. Asharam Bapu Ji

"भगवत्प्राप्ति के उद्देश्य से किया हुआ जप दोषों को मिटाता है और पुण्यों को बढाता है।" #बापूजी
 
"हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।"