दाल्भ्य ने पूछा: ब्रह्मन्! मृत्युलोक में आये हुए प्राणी प्राय: पापकर्म करते रहते हैं ।उन्हें नरक में न जाना पड़े इसके लिएकौन सा उपाय है? बताने की कृपा करें ।
पुलस्त्यजी बोले: महाभाग ! माघ मास आने पर मनुष्य कोचाहिए कि वह नहा धोकर पवित्र हो इन्द्रियसंयम रखते हुएकाम, क्रोध, अहंकार ,लोभ और चुगली आदि बुराइयों कोत्याग दे । देवाधिदेव भगवान का स्मरण करके जल से पैरधोकर भूमि पर पड़े हुए गोबर का संग्रह करे
उसमें तिल औरकपास मिलाकर एक सौ आठ पिंडिकाएँ बनाये ।
फिर माघ मेंजब आर्द्रा या मूल नक्षत्र आये, तब कृष्णपक्ष की एकादशीकरने के लिए नियम ग्रहण करें ।
भली भाँति स्नान करकेपवित्र हो शुद्ध भाव से देवाधिदेव श्रीविष्णु की पूजा करें ।
कोई भूल हो जाने पर श्रीकृष्ण का नामोच्चारण करें ।
रात कोजागरण और होम करें ।
चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेघ आदिसामग्री से शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले देवदेवेश्वरश्रीहरि की पूजा करें ।
तत्पश्चात् भगवान का स्मरण करकेबारंबार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियलअथवा बिजौरे के फल से भगवान को विधिपूर्वक पूजकरअर्ध्य दें
अन्य सब सामग्रियों के अभाव में सौ सुपारियों केद्वारा भी पूजनऔर अर्ध्यदान किया जा सकता है । अर्ध्य कामंत्र इस प्रकार है:
कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव ।
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।
सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज ॥
गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।
‘सच्चिदानन्दस्वरुप श्रीकृष्ण ! आप बड़े दयालु हैं । हमआश्रयहीन जीवों के आप आश्रयदाता होइये । हम संसारसमुद्र में डूब रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न होइये । कमलनयन ! विश्वभावन ! सुब्रह्मण्य ! महापुरुष ! सबके पूर्वज ! आपकोनमस्कार है ! जगत्पते ! मेरा दिया हुआ अर्ध्य आप लक्ष्मीजीके साथ स्वीकार करें ।’
तत्पश्चात् ब्राह्मण की पूजा करें ।उसे जल का घड़ा, छाता, जूता और वस्त्र दान करें ।दान करते समय ऐसा कहें : ‘इसदान के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों ।’ अपनीशक्ति के अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गौ का दान करें ।
द्विजश्रेष्ठ ! विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह तिल से भरा हुआपात्र भी दान करे ।
उन तिलों के बोने पर उनसे जितनीशाखाएँ पैदा हो सकती हैं, उतने हजार वर्षों तक वहस्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ।
तिल से स्नान होम करे, तिलका उबटन लगाये, तिल मिलाया हुआ जल पीये, तिल का दानकरे और तिल को भोजन के काम में ले ।’
इस प्रकार हे नृपश्रेष्ठ ! छ: कामों में तिल का उपयोग करने केकारण यह एकादशी ‘षटतिला’ कहलाती है, जो सब पापों कानाश करनेवाली है ।