Thursday, 23 March 2017
Papmochani Ekadashi
लोमशजी ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! पूर्वकाल की बात है । अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में, जहाँ गन्धर्वों की कन्याएँ अपने किंकरो के साथ बाजे बजाती हुई विहार करती हैं, मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए गयी । वे महर्षि चैत्ररथ वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे । मंजुघोषा मुनि के भय से आश्रम से एक कोस दूर ही ठहर गयी और सुन्दर ढंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी । मुनिश्रेष्ठ मेघावी घूमते हुए उधर जा निकले और उस सुन्दर अप्सरा को इस प्रकार गान करते देख बरबस ही मोह के वशीभूत हो गये । मुनि की ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आयी और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी । मेघावी भी उसके साथ रमण करने लगे । रात और दिन का भी उन्हें भान न रहा । इस प्रकार उन्हें बहुत दिन व्यतीत हो गये । मंजुघोषा देवलोक में जाने को तैयार हुई । जाते समय उसने मुनिश्रेष्ठ मेघावी से कहा: ‘ब्रह्मन् ! अब मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये ।’
मेघावी बोले : देवी ! जब तक सवेरे की संध्या न हो जाय तब तक मेरे ही पास ठहरो। अप्सरा ने कहा : विप्रवर ! अब तक न जाने कितनी ही संध्याएँ चली गयीं ! कृपा करके बीते हुए समय का विचार तो कीजिये !
लोमशजी ने कहा : राजन् ! अप्सरा की बात सुनकर मेघावी चकित हो उठे । उस समय उन्होंने बीते हुए समय का हिसाब लगाया तो मालूम हुआ कि उसके साथ रहते हुए उन्हें सत्तावन वर्ष हो गये । उसे अपनी तपस्या का विनाश करनेवाली जानकर मुनि को उस पर बड़ा क्रोध आया । उन्होंने शाप देते हुए कहा: ‘पापिनी ! तू पिशाची हो जा ।’ मुनि के शाप से दग्ध होकर वह विनय से नतमस्तक हो बोली : ‘विप्रवर ! मेरे शाप का उद्धार कीजिये । सात वाक्य बोलने या सात पद साथ -साथ चलने मात्र से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है । ब्रह्मन् ! मैं तो आपके साथ अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं, अत: स्वामिन् ! मुझ पर कृपा कीजिये ।’
मुनि बोले : भद्रे ! क्या करुँ ? तुमने मेरी बहुत बड़ी तपस्या नष्ट कर डाली है। फिर भी सुनो। चैत्र कृष्णपक्ष में जो एकादशी आती है उसका नाम है ‘पापमोचनी।’ वह शाप से उद्धार करने वाली तथा सब पापों का क्षय करने वाली है । सुन्दरी ! उसी का व्रत करने पर तुम्हारी पिशाचता दूर होगी ।
ऐसा कहकर मेघावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गये । उन्हें आया देख च्यवन ने पूछा : ‘बेटा ! यह क्या किया ? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला !’
मेघावी बोले : पिताजी ! मैंने अप्सरा के साथ रमण करने का पातक किया है । अब आप ही कोई ऐसा प्रायश्चित बताइये, जिससे पातक का नाश हो जाय ।
च्यवन ने कहा : बेटा ! चैत्र कृष्णपक्ष में जो ‘पापमोचनी एकादशी’ आती है, उसका व्रत करने पर पापराशि का विनाश हो जायेगा ।
पिता का यह कथन सुनकर मेघावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया । इससे उनका पाप नष्ट हो गया और वे पुन: तपस्या से परिपूर्ण हो गये । इसी प्रकार मंजुघोषा ने भी इस उत्तम व्रत का पालन किया । ‘पापमोचनी’ का व्रत करने के कारण वह पिशाच योनि से मुक्त हुई और दिव्य रुपधारिणी श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्गलोक में चली गयी ।
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