Wednesday, 31 May 2017

Gomaye Vasate Lakshmi (गोमय वसते लक्ष्मी)

भारतीय नस्ल की गाय बहुत ही विशेष होती हैं। यह बात अब पूरा विश्व मानने लगा है। भारतीय लोग तो वैसे भी गाय को माता मानते हैं। संतश्री आशाराम बापूजी गौशालाओं में बड़े ही प्रेम से गायों की सेवा की जाती है फिर चाहे वे दूध दें या ना दें। पूज्य बापूजी तो कहते हैं, "गाय माता धरती की सबसे बड़ी वैद्यराज हैं।" 

आईये देखते हैं कैसे:


👇

Friday, 26 May 2017

माँ गंगा की महिमा

माँ गंगा की महिमा
(गंगा दशहरा प्रारम्भ : 26 मई, समाप्त : 4 जून)


पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से:
कपिल मुनि के कोप से सगर राजा के पुत्रों की मृत्यु हो गयी । राजा सगर को पता चला कि उनके पुत्रों के उद्धार के लिए माँ गंगा ही समर्थ हैं । अतः गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए सगर के पौत्र अंशुमान, अंशुमान के पुत्र दिलीप और दिलीप के पुत्र भगीरथ घोर तपस्या में लगे रहे । आखिरकार भगीरथ सफल हुए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में । इसलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है। जिस दिन गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुईं वह दिन ‘गंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाता है ।

जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘गंगाष्टक’ लिखा है, गंगा की महिमा गायी है । रामानुजाचार्य, रामानंद स्वामी, चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बड़ी महिमा गायी है । कई साधु-संतों, अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे ।

अब तो विश्व के वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी आश्चर्यचकित हो उठे ।

हृषिकेश में स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं । इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है । वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें । किंतु गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं । तीव्र व दृढ़ श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है ।

सन् 1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था । उसने वाराणसी से गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है - ‘इस जल में कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है ।’ 

दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था ।


‘आइने अकबरी’ में लिखा है कि ‘अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे गंगाजल को अमृत मानते थे।’ औरंगजेब और मुहम्मद तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे। शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।

कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी नदियाँ, झरने और नाले गंगाजी में मिल चुके होते हैं । अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है।

अभी रुड़की विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं ।’

एक बार मैंने गंगोत्री से गंगाजल भरा । उसके बाद मैं आबू गया । आबू की गुफा में रहकर मैं साधना करता था, वहाँ दो-तीन वर्षों के बाद भी उस जल में कोई काई या जीवाणु नहीं दिखे। पानी एकदम साफ-स्वच्छ रहा ।

फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को कीटाणुनाशक औषधि मानकर उसके इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण कौन-से कीटाणु हैं, उसमें गंगाजल के वे इंजेक्शन रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा !

संत तुलसीदासजी कहते हैं :
गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।
(श्रीरामचरित. अयो. कां. : 86.2)


सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली माँ गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं : गंगोत्री, हर की पौड़ी (हरिद्वार), प्रयागराज त्रिवेणी, काशी और गंगासागर । गंगा दशहरे के दिन गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है ।
(ऋषि प्रसाद, जून 2003)



10 तरह के पापों से छुटकारा पाने के लिए :

Wednesday, 24 May 2017

Selfless Service by Sadhaks of Haridwar

कुप्रचार के इस दौर में जो सेवा करते हैं वो पृथ्वी पर के देव होते है 

हरिद्वार के कुष्ट आश्रमों में संतश्री आशारामजी बापू के साधकों द्वारा अनाज वितरण।




Sunday, 21 May 2017

22 मई- अपरा #Ekadashi


इसके व्रत से ब्रह्महत्या,भूत योनी व परनिन्दा आदि पाप दूर हो जाते है।





अपरा एकादशी महात्म्य:

युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? मैं उसका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ । उसे बताने की कृपा कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! आपने सम्पूर्ण लोकों के हित के लिए बहुत उत्तम बात पूछी है । राजेन्द्र ! ज्येष्ठ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार वैशाख ) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘अपरा’ है । यह बहुत पुण्य प्रदान करनेवाली और बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है । ब्रह्महत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या करनेवाला, गर्भस्थ बालक को मारनेवाला, परनिन्दक तथा परस्त्रीलम्पट पुरुष भी ‘अपरा एकादशी’ के सेवन से निश्चय ही पापरहित हो जाता है । जो झूठी गवाही देता है, माप तौल में धोखा देता है, बिना जाने ही नक्षत्रों की गणना करता है और कूटनीति से आयुर्वेद का ज्ञाता बनकर वैध का काम करता है… ये सब नरक में निवास करनेवाले प्राणी हैं । परन्तु ‘अपरा एकादशी’ के सवेन से ये भी पापरहित हो जाते हैं । यदि कोई क्षत्रिय अपने क्षात्रधर्म का परित्याग करके युद्ध से भागता है तो वह क्षत्रियोचित धर्म से भ्रष्ट होने के कारण घोर नरक में पड़ता है । जो शिष्य विद्या प्राप्त करके स्वयं ही गुरुनिन्दा करता है, वह भी महापातकों से युक्त होकर भयंकर नरक में गिरता है । किन्तु ‘अपरा एकादशी’ के सेवन से ऐसे मनुष्य भी सदगति को प्राप्त होते हैं ।

माघ में जब सूर्य मकर राशि पर स्थित हो, उस समय प्रयाग में स्नान करनेवाले मनुष्यों को जो पुण्य होता है, काशी में शिवरात्रि का व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, गया में पिण्डदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करनेवाला पुरुष जिस पुण्य का भागी होता है, बृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्नान करनेवाला मानव जिस फल को प्राप्त करता है, बदरिकाश्रम की यात्रा के समय भगवान केदार के दर्शन से तथा बदरीतीर्थ के सेवन से जो पुण्य फल उपलब्ध होता है तथा सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणासहित यज्ञ करके हाथी, घोड़ा और सुवर्ण दान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, ‘अपरा एकादशी’ के सेवन से भी मनुष्य वैसे ही फल प्राप्त करता है । ‘अपरा’ को उपवास करके भगवान वामन की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है । इसको पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है ।

Yog Sadhana at Sant Shri Asharam Ji Bapu Ashram, New Tehri

"हिमालय में योग साधना करने का निश्चय करना जितना आसान है उतना ही कठिन है सांसरिक बाधाओं को चीरकर हिमालय पहुँच योग साधना में रत होना..."


संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, नई टिहरी, उत्तराखंड में भाइयों के लिये साधना का उत्तम अवसर। दृढ़ संकल्प करें व जल्द से जल्द हिमालय पहुँच कर लाभ लें। टिहरी आश्रम में समर्पित होने वाले साधक भाई केवल दोपहर 2 से 5 बजे तक सम्पर्क करें :- 09411185589







Friday, 19 May 2017

Thread Ceremony at AshramHaridwar

यूगांडा, ईस्ट अफ्रीका से संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार आये भारतीय परिवार ने जुड़वां बेटों का "जनेऊ संस्कार" करवाया। पुत्र प्राप्ति की इच्छा व्यक्त करने पर पूज्य बापूजी ने बच्चों के पिता को सेब का प्रसाद दिया था जिसका फल इन जुड़वां बेटों के रूप में मिला। दोनों बच्चे इतने जिज्ञासु हैं कि जैसे ही ब्राह्मण ने मंत्रोच्चार के साथ बोला "स्वाहा" उन्हें बताना पड़ा "offering food to the fire God." तीन से चार घंटे तक चले हवन को बच्चों ने बड़े ही धैर्य के साथ पूरा किया। उन्हें यह "Ceremony" खूब पसंद आयी।




Saturday, 13 May 2017

Pradhan Times - Voice Raised Against Injustice to Demand #Justice4Bapuji

Param Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu - 
|| आज भी हैं सनातन धर्म व संस्कृति रक्षक ||

दिल्ली: हिन्दू-मुस्लिम एकता मंच ने उठाई संतश्री की रिहाई की मांग। कहा - "झूठे केस में फंसाया गया बापूजी को"

Thursday, 11 May 2017

Buddh Purnima Celebrations at AshramHaridwar

10 मई - कल बुद्ध पूर्णिमा पर जहाँ लाखों लोगों ने गंगा स्नान किया, वहीं संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में बड़ी संख्या में भक्तों ने साध्वी रेखा दीदी के सत्संग का लाभ लिया। साथ ही अहमदाबाद से आये अरविंद ब्राह्मण ने पूरे विधि - विधान से हवन करवाया। सभी भक्तों ने भोजन प्रसादी तो पाई ही, पलाश के शर्बत व आमरस की शीतलता भी ग्रहण की।










Monday, 8 May 2017

Buddh Purnima Satsang at AshramHaridwar

"भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी, बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी।"
संतश्री आशारामजी बापू आश्रम हरिद्वार में 
साध्वी रेखा दीदी का सत्संग:-
१० मई - बुद्ध पूर्णिमा
समय - सुबह १०.३० बजे से
सम्पर्क - WA: 09997008832, Mobile: 09456782375

Friday, 5 May 2017

Mohini Ekadashi

६ मई - मोहिनी एकादशी


युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! वैशाख मास के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? उसका क्या फल होता है? उसके लिए कौन सी विधि है?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : धर्मराज ! पूर्वकाल में परम बुद्धिमान श्रीरामचन्द्रजी ने महर्षि वशिष्ठजी से यही बात पूछी थी, जिसे आज तुम मुझसे पूछ रहे हो।श्रीराम ने कहा : भगवन् ! जो समस्त पापों का क्षय तथा सब प्रकार के दु:खों का निवारण करनेवाला, व्रतों में उत्तम व्रत हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ।


वशिष्ठजी बोले : श्रीराम ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है। मनुष्य तुम्हारा नाम लेने से ही सब पापों से शुद्ध हो जाता है। तथापि लोगों के हित की इच्छा से मैं पवित्रों में पवित्र उत्तम व्रत का वर्णन करुँगा। वैशाख मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘मोहिनी’ है। वह सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है। उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं।

सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की सुन्दर नगरी है । वहाँ धृतिमान नामक राजा, जो चन्द्रवंश में उत्पन्न और सत्यप्रतिज्ञ थे, राज्य करते थे। उसी नगर में एक वैश्य रहता था, जो धन धान्य से परिपूर्ण और समृद्धशाली था। उसका नाम था धनपाल। वह सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था। दूसरों के लिए पौसला (प्याऊ), कुआँ, मठ, बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था। भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था। वह सदा शान्त रहता था। उसके पाँच पुत्र थे : सुमना, धुतिमान, मेघावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि। धृष्टबुद्धि पाँचवाँ था। वह सदा बड़े बड़े पापों में ही संलग्न रहता था। जुए आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी। वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था। उसकी बुद्धि न तो देवताओं के पूजन में लगती थी और न पितरों तथा ब्राह्मणों के सत्कार में। वह दुष्टात्मा अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बरबाद किया करता था। एक दिन वह वेश्या के गले में बाँह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। तब पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बन्धु बान्धवों ने भी उसका परित्याग कर दिया। अब वह दिन रात दु:ख और शोक में डूबा तथा कष्ट पर कष्ट उठाता हुआ इधर उधर भटकने लगा। एक दिन किसी पुण्य के उदय होने से वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम पर जा पहुँचा। वैशाख का महीना था। तपोधन कौण्डिन्य गंगाजी में स्नान करके आये थे। धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ सामने खड़ा होकर बोला : ‘ब्रह्मन् ! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।’

कौण्डिन्य बोले : वैशाख के शुक्लपक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। ‘मोहिनी’ को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किये हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।’

वशिष्ठजी कहते है : श्रीरामचन्द्रजी ! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्टबुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया। उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक ‘मोहिनी एकादशी’ का व्रत किया। नृपश्रेष्ठ ! इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरुढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह ‘मोहिनी’ का व्रत बहुत उत्तम है। इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है।’

Thursday, 4 May 2017

Milk and Sharbat Distribution on Akshay Tritiya ( अक्षय तृतीया ) at Har Ki Pauri ( Haridwar)

"हिन्दू संतों ने दिये ऐसे संस्कार,विश्व का हो रहा बेड़ा पार।
पर षड्यन्त्र हैं रोज तैयार,सन्त हो रहे उनका शिकार।।"


"बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" पर विश्वास करने वाली भारतीय संस्कृति के संस्कारों का लाभ तो पूरा विश्व ले रहा है मगर यह भी उतना ही सत्य है कि इस संस्कृति की जड़ें खोदने वाले अपने कुकृत्यों से बाज़ नहीं आ रहे। उनका हाल तो ऐसा है कि पेड़ की जिस डाली पर बैठे हैं उसी को काटने में लगे हैं। पराकाष्ठा है मूर्खता की। पूज्य बापूजी कहते हैं, "कुल्हाड़ी जिस पेड़ को काटती है वह उसी पेड़ से बनती है।" जिन हिन्दू संतों की देनी का कोई हिसाब नहीं है उन्हीं पर इतना जुल्म! कैसी विडम्बना है?

Wednesday, 3 May 2017

Pearls of Wisdom by Pujya Asharam Ji Bapu

Pujya Asharam Bapuji says that lust, greed, attachment, pride and anger are the inner enemies which rob one of the treasure of Self-Bliss and even among these, anger is the most detrimental to Sadhana. Some items do remain even after a theft is committed in the house. But if the house catches fire, everything is reduced to ashes leaving nothing behind. In the same way, if the thieves of greed and attachment have temporary sway over us, only some of our virtues are destroyed but if the fire of anger consumes our mind, our entire treasure of Japa, Tapa and virtues are destroyed. Therefore beware of anger. It is alright to act angrily but be ever alert not to let it possess you.