Friday, 30 December 2016
Gratitude is the best Attitude
Wednesday, 28 December 2016
In the middle of every difficulty, lies opportunity
"हजारों प्रतिकूलताओं में भी जो निराश नहीं होता वह अवश्य विजयी होता है। निराशा व कायरता तो कमजोर लोगों की पहचान है। सत्संग सुनकर असफलताओं के सिर पर पैर रखो और आगे बढ़ो।"
हरि ॐ......हरि ॐ......हरि ॐ.........
Monday, 26 December 2016
Tulsi Pujan Celebrations at AshramHaridwar
तुलसी पूजन दिवस - २५ दिसम्बर
Sunday, 25 December 2016
25 December - Tulsi Pujan Divas
25 दिसम्बर - " तुलसी पूजन दिवस "
Saturday, 24 December 2016
Come One Come All for Tulsi Pujan at AshramHaridwar
01.00PM - Mahaprasad
Friday, 23 December 2016
24 दिसम्बर - सफला एकादशी
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजेन्द्र ! बड़ी - बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘...सफला’ नाम की एकादशी होती है । उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।
राजन् ! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे । ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता ।
नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो । चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।
एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय ना तो उसे नींद आयी और ना आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर-उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया । उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।
राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज ! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।
Tuesday, 20 December 2016
२१ दिसम्बर- बुधवारी अष्टमी
२१ दिसम्बर- बुधवारी अष्टमी
(सूर्योदय से रात्रि ८.१९ तक।)
जप,दान,ध्यान व सभी पुण्यकर्मों का सूर्यग्रहण के समान अक्षय फल देने वाला शुभ समय।
Monday, 19 December 2016
What is Brahm?
Monday, 12 December 2016
The Existence Of GOD
Belief in the Existence of GOD shows that one is searching for truth. Truth is that which is unborn, immortal and remains unchanged in the past, present and future. To know it, one needs to purify one’s thoughts, speech and actions. Purification is of utmost importance because only through a purified mind can an aspirant think clearly and contemplate deeply. Once we are sincerely determined to search for the truth and fully committed to self – purification, we are certain to find the way and reach our goal. Truth itself becomes our guide and we find ourselves on the right path.
Truth is the Divine Force which dwells in every individual’s heart. It is the all-pervading, eternal reality joining one individual to another and linking all existence in one Divine awareness. That Divine Force is called GOD. One who believes in and surrenders himself to GOD attains freedom here and now. He knows that he belongs to GOD---and God belongs to him. His awareness shifts from the world to GOD and he lives a life free from insecurity and fear. He has an unshakable faith in Divine protection. The scriptures constantly remind us that just as the ocean accepts a river and makes it its own, so GOD receives all who sincerely seek the DIVINE. It does not matter which path they follow or from which background they come. The only requirement is a desire to know the truth. Once the desire is awakened, all means and resources come together. Water finds its own level; likewise, a true lover of GOD finds GOD. The highest philosophy is to know that truth and GOD are one and the same and the highest practice is to search for truth through one’s thoughts, speech and action.
Friday, 9 December 2016
१० दिसम्बर २०१६: मोक्षदा एकादशी / गीता जयंती
Tuesday, 6 December 2016
Budhwari Ashtami - 7 December 2016
७ दिसम्बर - बुधवारी अष्टमी
(सूर्योदय से रात्रि २.०५ तक)
जप - ध्यान, गंगास्नान, दान व श्राद्धकर्म का सूर्यग्रहण के समान अक्षय फल देने वाली उत्तम तिथि। सभी अवश्य लाभ लें।
Monday, 5 December 2016
Satsang Discourse - जिसने सत्य को जान लिया
हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं।"