Friday, 30 December 2016

Gratitude is the best Attitude

#विश्वगुरु_भारत_अभियान - 25th December to 1st January

 

"Gratitude is the best Attitude."

 
We are very grateful to our GREAT MASTER, "Sant Shri Asharamji Bapu", who taught us to serve the needful and live a selfless life.
 
पूज्य बापूजी के साधकों ने #हरिद्वार में गंगा किनारे ठंड में ठिठुरते लोगों को ओढ़ाये कम्बल।
 

Wednesday, 28 December 2016

In the middle of every difficulty, lies opportunity

"हजारों प्रतिकूलताओं में भी जो निराश नहीं होता वह अवश्य विजयी होता है। निराशा व कायरता तो कमजोर लोगों की पहचान है। सत्संग सुनकर असफलताओं के सिर पर पैर रखो और आगे बढ़ो।"


हरि ॐ......हरि ॐ......हरि ॐ.........

 

Monday, 26 December 2016

Tulsi Pujan Celebrations at AshramHaridwar

तुलसी पूजन दिवस - २५ दिसम्बर

पूज्य संतश्री आशारामजी बापू Ashram Haridwar द्वारा कल हर्षोल्लास पूर्वक "तुलसी पूजन" पर्व मनाया गया। कड़ाके की ठंड के बावजूद भी लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। सर्वप्रथम भक्तों ने तुलसीजी का पूजन किया, फिर परिक्रमा करके तुलसीजी की आरती की गयी। इसके पश्चात सभी ने महाप्रसाद पाया।
 

Sunday, 25 December 2016

25 December - Tulsi Pujan Divas

25 दिसम्बर - " तुलसी पूजन दिवस "


पूज्य संतश्री आशारामजी बापू द्वारा 2014 में शुरू किये गए " तुलसी पूजन दिवस " ने व्यापक रूप ले लिया है। पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव से लोग तुलसी की महिमा भूलते जा रहे थे, पूज्यश्री की इस पहल से लोगों में जागृति आयी है तथा लोग अपने घरों व परिसरों में "तुलसी - पौधा" लगाकर व उसका पूजन कर लौकिक - अलौकिक और आध्यात्मिक लाभ लेने लगे हैं। इसी शृंखला में हरिद्वार, उत्तराखंड के विभिन्न स्कूलों में विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक "तुलसी पूजन" में भाग लिया।
 
 

Saturday, 24 December 2016

Come One Come All for Tulsi Pujan at AshramHaridwar

Sant Shri Asharamji Bapu, Ashram Haridwar, invites you all for "Tulsi Pujan" on 25th December 2016 as per programme:-
 
10.00AM - Shri Asharamayan Path Aarambh
11.00AM - Tulsi Pujan
01.00PM - Mahaprasad
 
Venue - Sant Shri Asharamji Bapu Ashram, Haripur Kalan, Near Bharat Mata Mandir, Haridwar - 249205
 
Contact - 09997008832
 

Friday, 23 December 2016

24 दिसम्बर - सफला एकादशी

युधिष्ठिर ने पूछा : स्वामिन् ! पौष मास के कृष्णपक्ष (गुजरात, महाराष्ट्र के लिए मार्गशीर्ष) में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है ? यह बताइये ।

 
 

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजेन्द्र ! बड़ी - बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है । पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘...सफला’ नाम की एकादशी होती है । उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए । जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है ।

राजन् ! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे । ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता ।

नृपश्रेष्ठ ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो । चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी । राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे । उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था । परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था । उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया । वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था । अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया । लुम्भक गहन वन में चला गया । वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया । एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया । फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा । उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था । उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था । पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था ।

एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया । पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा । उस समय ना तो उसे नींद आयी और ना आराम ही मिला । वह निष्प्राण सा हो रहा था । सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया । ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा । दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई । फिर इधर-उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया । वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था । राजन् ! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये । तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों ।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली । इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया । उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार ! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे ।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया । इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया । तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी । दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा । उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता ।

राजन् ! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है । संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है । महाराज ! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है ।

Tuesday, 20 December 2016

२१ दिसम्बर- बुधवारी अष्टमी

२१ दिसम्बर- बुधवारी अष्टमी

(सूर्योदय से रात्रि ८.१९ तक।)


 जप,दान,ध्यान व सभी पुण्यकर्मों का सूर्यग्रहण के समान अक्षय फल देने वाला शुभ समय।

 

Monday, 19 December 2016

What is Brahm?

 
 
The word Brahm is derived from the Sanskrit verb root brha or brhi, meaning expansion, knowledge or all-pervasiveness. This word is always of a neuter gender; it indicates Absolute Reality beyond the concept of male and female and all other dualities. Brahm is omnipresent, omniscient, omnipotent. It is the very nature of one’s true self. That Absolute Reality, that Supreme Consciousness, which is never affected by the ever-changing nature of the world, is Brahm. That which alone exists and allows the entire universe to appear within itself is called Brahm. That Brahm is no different from oneself, all of humanity is Brahm. From this point of view, all people are essentially one and the same. Placing duality and diversity within humanity is the greatest loss and realizing the oneness within and without is the highest gain.
 
 
 
Attaining knowledge of Brahm directly from within is called Enlightenment. The human mind is in the habit of experiencing and projecting pains and pleasures but when it is made aware of the everlasting Truth, one starts seeing things as they are. The mind identifies itself with the objects of the external world and thus places a veil between the aspirant and the Reality but the moment this self-created veil of Maya(illusion) is removed, one attains freedom. The veil of ignorance covers human consciousness on three levels, the state of waking, dreaming and deep sleep. Unless the veil over all these levels is lifted, the light of pure consciousness can not shine. Thus, permeating one’s consciousness to the state beyond and expanding it to the Supreme Consciouness is called Enlightenment. From the heights of Enlightenment, one remains aware of all states waking, dreaming and deep sleep and yet remains in the state beyond—Turiya. Before casting off his body, such an Enlightened Sage lives in the world yet remains above. He sees himself in the whole COSMOS and the whole COSMOS in himself. His self becomes the self of all.
Om Om Om……
 
Courtesy: Mandukya Upnishad

Monday, 12 December 2016

The Existence Of GOD

Belief  in the  Existence of GOD shows that one is searching for truth.  Truth is that which is unborn, immortal and remains unchanged in the past, present and future. To know it, one needs to purify one’s thoughts, speech and actions. Purification is of utmost importance because only through a purified mind can an aspirant think clearly and contemplate deeply. Once we are sincerely determined to search for the truth and fully committed to self – purification, we are certain to find the way and reach our goal. Truth itself becomes our guide and we find ourselves on the right path.

Truth is the Divine Force which dwells in every individual’s heart. It is the all-pervading, eternal reality joining one individual to another and linking all existence in one Divine awareness. That Divine Force is called GOD. One who believes in and surrenders himself to GOD attains freedom here and now. He knows that he belongs to GOD---and  God belongs to him. His awareness shifts from the world to GOD and he lives a life free from insecurity and fear. He has an unshakable faith in Divine protection. The scriptures constantly remind us that just as the ocean accepts a river and makes it its own, so GOD receives all who sincerely seek the DIVINE. It does not matter which path they follow or from which background they come. The only requirement is a desire to know the truth. Once the desire is awakened, all means and resources come together. Water finds its own level; likewise, a true lover of GOD finds GOD. The highest philosophy is to know that truth and GOD are one and the same and the highest practice is to search for truth through one’s thoughts, speech and action. 

Friday, 9 December 2016

१० दिसम्बर २०१६: मोक्षदा एकादशी / गीता जयंती


युधिष्ठिर बोले : देवदेवेश्वर ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन् ! यह सब यथार्थ रुप से बताइये ।
 
श्रीकृष्ण ने कहा : " नृपश्रेष्ठ ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का वर्णन करुँगा, जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उसका नाम ‘मोक्षदा एकादशी’ है जो सब पापों का हरण करने वाली है । राजन् ! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए । पूर्वाक्त विधि से ही दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना उचित है । मोक्षदा एकादशी बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली है । उस दिन रात्रि में मेरी प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए । जिसके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को करें तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।
पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे । वे अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते थे । इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नीच योनि में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रात: काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया ।
राजा बोले : ब्रह्माणो ! मैने अपने पितरों को नरक में गिरा हुआ देखा है । वे बारंबार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि : 'तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो।' द्विजवरो ! इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं मिलता । क्या करुँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है । द्विजोत्तमो ! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जायें, बताने की कृपा करें । मुझ बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं ! अत: ऐसे पुत्र से क्या लाभ है ?
 
ब्राह्मण बोले : " राजन् ! यहाँ से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है । वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । नृपश्रेष्ठ ! आप उन्हीं के पास चले जाइये।"
 
ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया । मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी ।
राजा बोले: " स्वामिन् ! आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल हैं किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अत: बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहाँ से छुटकारा होगा ?"
 
राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानस्थ रहे । इसके बाद वे राजा से बोले : 'महाराज! मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष में जो ‘मोक्षदा’ नाम की एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो । उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से उद्धार हो जायेगा ।’
 
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! मुनि की यह बात सुनकर राजा पुन: अपने घर लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरों सहित पिता को दे दिया । पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । वैखानस के पिता पितरों सहित नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले: ‘बेटा ! तुम्हारा कल्याण हो ।’ यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये ।
राजन् ! जो इस प्रकार कल्याणमयी ‘‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देनेवाली ‘मोक्षदा एकादशी’ मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है । इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।
 
 

Tuesday, 6 December 2016

Budhwari Ashtami - 7 December 2016

७ दिसम्बर - बुधवारी अष्टमी

(सूर्योदय से रात्रि २.०५ तक)


जप - ध्यान, गंगास्नान, दान व श्राद्धकर्म का सूर्यग्रहण के समान अक्षय फल देने वाली उत्तम तिथि। सभी अवश्य लाभ लें।

 
 

Monday, 5 December 2016

Satsang Discourse - जिसने सत्य को जान लिया

एक बार भारतवर्ष में एक सभा में व्याख्यान देते हुए स्वामी रामतीर्थ को ऐसे विषय  पर बोलना पड़ा जिसमें राजनीति की गंध आ रही थी। श्रोताओं में न्यायाधीश, वकील और बड़े उच्च पद वाले सरकारी कर्मचारी भी थे। व्याख्यान के बाद वे स्वामीजी के पास आकर यह कहते हुए प्रतिवाद करने लगे कि, "स्वामीजी! भविष्य  में ऐसा व्याख्यान कभी न दीजिये क्योंकि भय है कि आपका शरीर कारागृह में डाल दिया जायेगा या फाँसी पर लटका दिया जायेगा।"
इस पर स्वामी रामतीर्थ ने उत्तर दिया, "प्रियवरों! राम जूडास इसकेरियट(Judas Iscariot) का काम नहीं कर सकता। राम सत्य के ईसामसीह को चाँदी के तीस टुकड़ों के पीछे नहीं बेच सकता क्योंकि कोई व्यक्ति राम को यह निश्चय नहीं करा सकता कि इस संसार में ऐसी भी तेज़ तलवार है जो आत्मा को काट सके या ऐसा तीक्ष्ण शस्त्र भी कोई है जो राम को घायल कर सके। अमर वस्तु,अविनाशी आत्मा, कभी ना उत्पन्न होने वाला, ना ही कभी मारे जाने योग्य, कल और आज सदैव एक समान रहने वाला यह राम है, तो फिर राम उनकी बात कैसे मानता?"   
सत्य और धर्म की राह पर चलने वाले हर महापुरुष को कठोर यातनायेँ व घोर कष्ट सहने पड़े परन्तु उन्होने अपना मार्ग ना बदला। वर्तमान समय में भी अपने हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये घोर कष्ट झेलने वाले परम पूज्य संतश्री आशारामजी बापू भी कहते हैं :-
" हमें मिटा सके यह जमाने में दम नहीं,
   हमसे है जमाना, जमाने से हम नहीं।"
जिसने सत्य को जान लिया,अपने आप को पहचान लिया कौन है जो उसका कुछ बिगाड़ पाये?

Thursday, 1 December 2016

Prernamurti in Mumbai

"कबीरा कलयुग आ गया झर-झर पड़े अंगार,
संत ना होते जगत में तो जल मरता संसार।"

 

परम पूज्य भारती श्रीजी का सत्संग आज (1st दिसम्बर) शाम 5 बजे से गोरेगांव आश्रम, मुंबई में। सभी अवश्य लाभ लें।