Monday, 31 July 2017

Bal Sanskar Kendra @ AshramHaridwar

30 जुलाई - संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में "बाल संस्कार" की बैठक में बहनों ने लिया नये केन्द्र खोलने का संकल्प। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये समाज को करेंगी प्रोत्साहित।


Saturday, 29 July 2017

Rescue operations carried out by Asharam Ji Bapu disciples in flood-hit area

"बाढ़ से त्रस्त गुजरात राज्य - संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, अहमदाबाद द्वारा पहुँची राहत सामग्री का 2500 से अधिक बाढ़-पीड़ितों ने लिया लाभ।"

"जब भी देश में प्राकृतिक आपदाओं का कहर हुआ है, संत आशारामजी बापू एवं उनके शिष्य राहत - कार्य करने में आगे रहे हैं फिर चाहे वह कच्छ - भुज का भूकम्प हो, प्रलयकारी सुनामी की लहरें हों, ओड़िशा में आयी बाढ़ हो या उत्तराखंड की भयंकर त्रासदी। बापूजी द्वारा किये गये सेवाकार्यों से पीड़ितों को बड़े स्तर पर राहत मिली है"

पढ़ें विस्तार से:-

Thursday, 27 July 2017

Naag Panchami - नाग पंचमी

नाग पंचमी - 27 जुलाई

हमारे देश की सनातन संस्कृति ने विश्व को कल्याण का मार्ग ही नहीं बताया बल्कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्' का सूत्र देकर सिर्फ मानव के प्रति ही नहीं वरन् प्राणी मात्र से प्रेम करने की प्रेरणा दी है । ‘नाग पंचमी' का पर्व इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । इस पर्व पर नागों की पूजा की जाती हैं । पुराणों में इसकी अनेक कथाएँ मिलती हैं ।

 ‘नाग पंचमी' मनाने का चाहे जो भी कारण हो, किंतु यह पर्व इस बात को तो पूर्ण रूप से स्पष्ट करता है कि हमारी संस्कृति समग्र विश्व को कुटुम्ब मानकर हसक प्राणियों के प्रति भी वैर वृत्ति न रखने की, उनके प्रति सद्भाव जगाने की तथा उन्हें अभयदान देने की ओर संकेत करती है । भगवान शंकर के गले में सर्प तथा भगवान विष्णु की शैया का शेषनाग इसी बात का प्रमाण है कि जो महापुरुष सभी प्राणियों में अपनी आत्मा को निहारता है, सर्प जैसे विषैले जीव भी उसके मित्र हो जाते हैं ।

सर्प जैसे जहरीले प्राणी को भी देवताओं का स्थान देकर प्रेम तथा भक्ति-भाव से उसकी पूजा करना-यह भारतीय संस्कृति तथा ऋषि-मुनियों की ही देन है ।

राग-द्वेष, तथा विनाश की ओर दौड़ते इस विश्व में ऐसे पर्वों के माध्यम से भी जो शांति एवं प्रेम कायम है वह इस देश की सनातन संस्कृति तथा भारत के संतों के इसी प्रेम का ही प्रभाव है ।


(लोक कल्याण सेतु : जुलाई १९९८)

Watch Param Pujya Sant Shri Asharam Ji Bapu Satsang : Naag Panchami Ka Rahasya ( नाग पंचमी का रहस्य )

Sunday, 23 July 2017

Shri Sadguru Chalisa - श्रीसदगुरु चालीसा

"ॐ नमो गुरुदेव जी सबके सृजनहार, व्यापक अन्तर बाहर में पारब्रह्म करतार"

"प्रतिदिन श्रीसदगुरु चालीसा का पाठ, बढ़ाये गुरुचरणों में विश्वास।"

Wednesday, 19 July 2017

Kamika Ekadashi - कामिका एकादशी


कामिका एकादशी - 20 जुलाई 2017


कामिका एकादशी 'कथा'

युधिष्ठिर ने पूछा : गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ़) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! सुनो । मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था ।

नारदजी ने प्रशन किया : हे भगवन् ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइये ।

ब्रह्माजी ने कहा : नारद ! सुनो । मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है । उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए ।

भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है । सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है ।

जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं ।

जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियोंसहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है । जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागोंसहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।

अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसारसमुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है ।

‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है ।

लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।

या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥

‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’

जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है ।’

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है । ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए । यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है । जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है ।

Tuesday, 18 July 2017

Press Release - 6th Akhil Bharatiya Hindu Adhiveshan

6th Akhil Bharatiya Hindu Adhiveshan - Goa
(छठा अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन - गोवा)

150 हिन्दुत्ववादी संगठनों के 400 प्रतिनिधि। 

एक ही सवाल 

संतश्री आशाराम बापूजी 

जैसे #निर्दोष_संत_को_जेल क्यों?


Sunday, 16 July 2017

Saint Sadhram Sahib (Sacho Satram) from Pakistan visits AshramHaridwar

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम हरिद्वार में संगत के साथ पधारे,पाकिस्तान के सिन्धप्रान्त से साईंसतरामदास गद्दी के वर्तमान गद्दीनशीन संत साईंसाधराम साहेब।



Friday, 14 July 2017

Selfless Service by Disciples at Haridwar on #GuruPurnima

परम पूज्य संतश्री आशारामजी बापू के साधकों द्वारा "गुरुपूर्णिमा" के निमित्त हरिद्वार के अस्पतालों में रोगियों को वस्त्र व फल वितरित किये गये।







Wednesday, 12 July 2017

GuruPurnima - Salutation to Pujya Asharam Ji Bapu - Press Release

"The ones who are strong enough to think they can change the world, are the ones who do like Pujya Asharam Bapu Ji".

Not only Spirituality but many more other inspirations are being given also by Sant Shri Asharam Ji Bapu. Must read:-

Tuesday, 11 July 2017

Guru Purnima at Ashram Haridwar

कल "गुरुपूर्णिमा" के पावन पर्व पर संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में बड़ी संख्या में दूर-दूर से आये साधक पूज्य गुरुदेव का मानस-पूजन व पादुका-पूजन कर भाव विभोर हो गये। सभी ने श्रद्धापूर्वक ध्यान, भजन, जप तथा विडियो सत्संग का लाभ लिया। दिये जगाने के लिये तो जैसे सब में होड़ ही लग गई। आरती के बाद साधकों ने पूज्य गुरुदेव की कुटीर की परिक्रमा की व भोजन प्रसादी पाकर अपने को धन्य किया। इस अवसर पर बहनों ने अपने-अपने क्षेत्रों में "बाल संस्कार केंद्र" खोलने का संकल्प भी लिया।













Saturday, 8 July 2017

GuruPurnima -9-July-2017

SantShri Asharamji Bapu Ashram, Haridwar 
wishes you all 
"A Very Happy & Enlightened GuruPurnima - 2017."


“गुरुपूर्णिमा उत्सव” पूर्णता की खबर लाने वाला उत्सव है। इस व्रत में सद्गुरु पूजन किये बिना शिष्य अन्न नहीं खाता। शारीरिक पूजन करने का अवसर नहीं मिलता तो मन से ही पूजन कर लेता है। षोडशोपचार से पूजा करने का जो पुण्य होता है उससे कई गुना ज्यादा मानस पूजा का पुण्य कहा गया है। वह सतशिष्य सद्गुरु की मानस पूजा कर लेता है।
“भावे हि विद्यते देव:।“
लोहे की, काष्ठ या पत्थर की मूर्ति में देव नहीं, तुम्हारा भाव ही तो देव है। सतशिष्य अपने सद्गुरु को मन ही मन पवित्र तीर्थों के जल से नहलाता है। वस्त्र पहनाता है, तिलक करता है व पुष्पों की माला अर्पित करता है।
“ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति: पूजामूलं गुरो: पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा।।“

गुरु, आचार्य आदि सब अपनी – अपनी जगह पर आदर करने योग्य हैं लेकिन सद्गुरु तो सदैव पूजने योग्य हैं। सत्य का जिनको ज्ञान हो गया, परमात्मा का जिनको अपने हृदय में साक्षात्कार हो गया वे सद्गुरु हैं। सद्गुरु का पूजन, सद्गुरु का आदर, ज्ञान व शाश्वत अनुभव का आदर है, मुक्ति का आदर है, अपने जीवन का आदर है।
- परम पूज्य संत श्रीआशारामजी बापू की अमृत वाणी

Wednesday, 5 July 2017

Pearls of Wisdom by Pujya Asharam Ji Bapu

“जिसने आत्मा को अपने ही स्वरूप से जान लिया, उसकी बस आत्मा में ही प्रीति, आत्मा में ही तृप्ति व आत्मा में ही संतुष्टि होती है। वह कृतकृत्य हो जाता है। उसको कुछ करना शेष नहीं रहता है, कुछ पाना शेष नहीं रहता है। आत्मा को जानने से कुछ भी अप्राप्त नहीं रहता। आत्मा तो अमृतरूप है। आत्मा की मृत्यु तो होती ही नहीं फिर मृत्यु से बचने के लिये और अमरत्व की प्राप्ति के लिये कौन सा कर्म करना है? अमरत्व तो नित्य प्राप्त ही है। कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं, कोई जटिल साधन करने की जरूरत नहीं। वह तो अपना आपा ही है, जो स्वयं ज्ञानस्वरूप है परम प्रकाशरूप है”

Monday, 3 July 2017

Devshayani Ekadashi

देवशयनी एकादशी - 4 जुलाई

आषाढ़ शुक्ल एकादशी को “देवशयनी एकादशी” कहते हैं। भगवान नारायण इस दिन से चार मास तक क्षीर सागर में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इसीलिये इस दिन को 'देवशयनी'  कहा जाता है। इस काल (चतुर्मास) में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, ग्रहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं।

एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने बताया – “ सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी किंतु भविष्य में क्या हो जाये, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है। उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस दुर्भिक्ष (अकाल) से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा - व्रत आदि में कमी हो गई। प्रजा ने राजा के पास जाकर गुहार लगाई।

राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन  सा पाप - कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन जानने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। वहाँ विचरण करते - करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।

तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा- 'महात्मन्‌! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें।' यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा- 'हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है जबकि आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से ही संभव है।' किंतु राजा का हृदय एक निरपराध शूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने कहा- “ हे देव ! मैं उस निरपराध को मार दूँ, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है। कृपा करके आप कोई और उपाय बताएँ।“ महर्षि अंगिरा ने कहा – “ आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।“

राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आये और चारों वर्णों सहित ‘देवशयनी एकादशी’ का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन -धान्य से परिपूर्ण हो गया।

देवशयनी एकादशी का महात्मय पूज्य बापूजी की मधुर वाणी में अवश्य सुनें: