Monday, 30 October 2017

प्रबोधिनी एकादशी (Prabodhini Ekadashi) - 31 अक्टूबर 2017

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे अर्जुन ! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ । एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा : ‘हे पिता ! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें ।’

ब्रह्माजी बोले : हे पुत्र ! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है । इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है । हे पुत्र ! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं । ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं ।

हे नारद ! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए । जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है ।

इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’ । यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता ) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है ।

इसलिए हे नारद ! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए । रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए ।

'प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है ।

जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।

जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।

पूज्य संतश्री आशारामजी बापू की अमृतवाणी - देवउठी एकादशी महिमा व पूजन विधि:

Sunday, 29 October 2017

Gopashtami Celebrations at Ashram Haridwar

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में 'गोपाष्टमी' के पावन पर्व पर गौपूजनपरिक्रमा करके गायों को लड्डू और चारा खिलाते भक्तजन।




Friday, 27 October 2017

Dev Uthani Ekadashi - Sadhvi Amulyaa Bahen Satsang

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में 

"देवउठी एकादशी" पर 

साध्वी अमूल्या बहन का सत्संग 

दिनाँकः 31अक्टूबर 2017

समय: सुबह 10:30शाम 4 बजे से

पताः सप्तसरोवर, गीता कुटीर के पास, हरिपुरकलां - 249401

सम्पर्कः 09997008832 , 08755531150



Wednesday, 25 October 2017

विद्यार्थी अनुष्ठान शिविर - Vidhyarthi Anusthan Shivir

"तेजस्वी बालक, देश की शान"

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में 
"विद्यार्थी अनुष्ठान शिविर"

दिनाँकः 29th अक्टूबर से 5th नवम्बर 2017

पताः सप्तसरोवर, गीता कुटीर के पास, हरिपुरकलां - 249401

सम्पर्कः 09997008832 , 08755531150

Saturday, 21 October 2017

Selfless Service by Sadhaks in Haridwar

हरिद्वार की गरीब व पिछड़ी बस्ती बैरागी कैम्प में संतश्री आशारामजी बापू के साधकों द्वारा, दिवाली के निमित्त फल, मिठाई, खील-बताशे,फुलझडी़, मोमबत्ती, साबुन, किताबें, वस्त्र व दक्षिणा तो बांटे ही गये साथ में सबने मिलकर भगवन्नाम जप भी किया।






Friday, 20 October 2017

Press Release - Versatile Development of the students

Bal Sanskar Sewa द्वारा 19 से 25 अक्टूबर 2017 
"दीपावली विद्यार्थी अनुष्ठान शिविर" का आयोजन @ 
परम पूज्य संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, अहमदाबाद

Thursday, 19 October 2017

19 October 2017 - Happy Diwali

Spiritual aspects of Diwali:

The lamplight is hot, it may burn but when a Sadguru kindles the light of Knowledge in your heart, it burns not things but sins and illumines your life, brings peace and happiness.

The worldly celebrations of Diwali give us worldly pleasure. Fortunate are the ones who through the medium of worldly Diwali, prepare themselves for the celebration of spiritual Diwali.

दिवाली में करने योग्य:-

दीपावली की रात भर घी का दिया जले सूर्योदय तक, तो बड़ा शुभ माना जाता है |

दीपावली के दिन चांदी की कटोरी में अगर कपूर को जलायें, तो परिवार में तीनों तापों से रक्षा होती |

हर अमावस्या को (और दिवाली को भी) पीपल के पेड़ के नीचे दिया जलाने से पितृ और देवता प्रसन्न होते हैं तथा घर में अच्छी आत्माएं जन्म लेती हैं |

नूतन वर्ष के दिन (दीपावली के अगले दिन ), गाय के खुर की मिट्टी से अथवा तुलसीजी की मिट्टी से तिलक करें, सुख-शान्ति में बरकत होगी|

दीपावली की शाम को अशोक वृक्ष के नीचे घी का दिया जलायें, तो बहुत शुभ माना जाता है |


Sunday, 15 October 2017

17 अक्टूबर 2017 - धनतेरस ( Dhanteras )

धनतेरस की शाम को घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की और मुख करके यमराज के लिये दो दीपदान करें व निम्न मंत्र बोलें :- 
  • ॐ यमाय नम:
  • ॐ धर्मराजाय नम: 
  • ॐ मृत्यवे नम:
  • ॐ अन्तकाय नम: 
  • ॐ कालाय नम:

शाम को तुलसीजी के आगे दीपक रखें इससे दरिद्रता मिटती है।

Saturday, 14 October 2017

15 अक्टूबर 2017 - रमा एकादशी / श्री माँ महंगीबाजी का महानिर्वाण दिवस



हर एकादशी को “श्री विष्णुसहस्रनाम” का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।

“राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने।।“ एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से श्री विष्णुसहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l...

एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए। एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। रमा एकादशी का व्रत बड़े – बड़े पापों को हरनेवाला, चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाला है |

युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! मुझ पर आपका स्नेह है, अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! कार्तिक (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आश्विन) के कृष्णपक्ष में "रमा" नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है । यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरनेवाली है ।

पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे । अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करने वाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई । राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया । एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि “एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे।“ इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा : “प्रिये ! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो ।“

चन्द्रभागा बोली : “ प्रभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते । प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी । इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये।“

शोभन ने कहा : “प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है । मैं भी उपवास करुँगा । दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा।“

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : “इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते - होते उनका प्राणान्त हो गया । राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया । चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।

नृपश्रेष्ठ ! उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए। वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे। एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये, जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये । राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये । शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया । फिर क्रमश: अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा ।

सोमशर्मा ने कहा : राजन् ! वहाँ सब कुशल हैं । आश्चर्य है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसी ने भी नहीं देखा होगा । बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?

शोभन बोले : द्विजेन्द्र ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है, उसी का व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है । ब्रह्मन् ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है । आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा ।

शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।

सोमशर्मा बोले : “शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा । इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है । तुम उसको स्थिर बनाओ।“

चन्द्रभागा ने कहा : “ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है । आप मुझे वहाँ ले चलिये । मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी।“

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : “राजन् ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये । वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली । इसके बाद वह पति के समीप गयी । अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया । तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा: ‘नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये । जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी, तबसे लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा।“

“नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार “रमा एकादशी” के व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है । राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है । यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है।“

Thursday, 5 October 2017

कार्तिक मास व्रत : 5 अक्टूबर से 4 नवम्बर


पापनाशक और पुण्य प्रदायक कार्तिक मास की महिमा
( कार्तिक मास व्रत : 5 अक्टूबर से 4 नवम्बर )

सूतजी ने महर्षियों से कहा : पापनाशक कार्तिक मास का बहुत ही दिव्य प्रभाव बतलाया गया है । यह मास भगवान विष्णु को सदा ही प्रिय तथा भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करनेवाला है ।

कार्तिक मास करने योग्य पाँच नियम :
हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । 
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके ।। 

‘रात्रि में भगवान विष्णु के समीप जागरण, प्रातःकाल स्नान करना, तुलसी की सेवा में संलग्न रहना, उद्यापन करना और दीप-दान देना - ये कार्तिक मास के पाँच नियम हैं ।’
(पद्म पुराण, उ.खंड : 117.3)

इन पाँचों नियमों का पालन करने से कार्तिक मास का व्रत करनेवाला पुरुष व्रत के पूर्ण फल का भागी होता है । वह फल भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला बताया गया है ।

कार्तिक में त्यागने योग्य कर्म : महादेवजी ने कहा : बेटा कार्तिकेय ! कार्तिक मास में प्रातःस्नान पापनाशक है । इस मास में जो मनुष्य दूसरे के अन्न का त्याग कर देता है, वह प्रतिदिन कृच्छ्रव्रत का फल प्राप्त करता है । कार्तिक में शहद का सेवन, काँसे के बर्तन में भोजन और मैथुन का विशेषरूप से परित्याग करना चाहिए।

कार्तिक में भूमि शयन का फल : चन्द्रमा और सूर्य के ग्रहणकाल में ब्राह्मणों को पृथ्वी-दान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह फल कार्तिक में भूमि पर शयन करनेवाले पुरुष को स्वतः प्राप्त हो जाता है ।

कार्तिक में दान : कार्तिक मास में ब्राह्मण दम्पति को भोजन कराकर उनका पूजन करें । अपनी क्षमता के अनुसार कम्बल, ओढ़ना-बिछौना एवं नाना प्रकार के रत्न व वस्त्रों का दान करें । जूते और छाते का भी दान करने का विधान है ।

कार्तिक में पत्तल में भोजन करने का फल : कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रतिदिन पत्तल में भोजन करता है, वह 14 इन्द्रों की आयुपर्यंत कभी दुर्गति में नहीं पड़ता । उसे समस्त तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है तथा उसकी सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं । (पद्म पुराण, उ.खंड : अध्याय 120)

कार्तिक में मोक्ष देनेवाला और पाप नाश करनेवाला नियम : कार्तिक में तिल-दान, नदी-स्नान, सदा साधु पुरुषों का सेवन और पलाश-पत्र से बनी पत्तल में भोजन मोक्ष देनेवाला है । कार्तिक मास में मौनव्रत का पालन, पलाश के पत्तों में भोजन, तिलमिश्रित जल से स्नान, निरंतर क्षमा का आश्रय और पृथ्वी पर शयन - इन नियमों का पालन करनेवाला पुरुष युग-युग के संचित पापों का नाश कर डालता है ।

कार्तिक में हरि भजन से पितरों का उद्धार : संसार में विशेषतः कलियुग में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरों के उद्धार के लिए भगवान श्रीहरि का सेवन करते हैं । वे हरिभजन के प्रभाव से अपने पितरों का नरक से उद्धार कर देते हैं । यदि पितरों के उद्देश्य से दूध आदि के द्वारा भगवान विष्णु को स्नान कराया जाय तो पितर स्वर्ग में पहुँचकर कोटि कल्पों तक देवताओं के साथ निवास करते हैं ।

कार्तिक में तुलसी पूजन का फल : जो मुख में, मस्तक पर तथा शरीर पर भगवान की प्रसादभूता तुलसी को प्रसन्नतापूर्वक धारण करता है, उसे कलियुग नहीं छूता । कार्तिक मास में तुलसी का पूजन महान पुण्यदायी है । प्रयाग में स्नान करने से, काशी में मृत्यु होने से और वेदों का स्वाध्याय करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब तुलसी के पूजन से मिल जाता है ।

कार्तिक में आँवले की छाया में भोजन का फल : जो द्वादशी को तुलसीदल व कार्तिक में आँवले का पत्ता तोड़ता है, वह अत्यंत निंदित नरकों में पड़ता है । जो कार्तिक में आँवले की छाया में बैठकर भोजन करता है, उसका वर्ष भर का अन्न-संसर्गजनित दोष (जूठा या अशुद्ध भोजन करने से लगनेवाला दोष) नष्ट हो जाता है।

कार्तिक मास में दीप-दान का फल : ‘पुष्कर पुराण’ में आता है : ‘जो मनुष्य कार्तिक मास में संध्या के समय भगवान श्रीहरि के नाम से तिल के तेल का दीप जलाता है, वह अतुल लक्ष्मी, रूप, सौभाग्य एवं सम्पत्ति को प्राप्त करता है।’

कार्तिक मास के व्रत से चतुर्मास व्रत का फल : यदि चतुर्मास के चार महीनों तक चतुर्मास के शास्त्रोचित नियमों का पालन करना सम्भव न हो तो एक कार्तिक मास में ही सब नियमों का पालन करना चाहिए।

जो ब्राह्मण सम्पूर्ण कार्तिक मास में काँस, मांस, क्षौर कर्म (हजामत), शहद, दुबारा भोजन और मैथुन छोड़ देता है, वह चतुर्मास के सभी नियमों के पालन का फल पाता है ।
(स्कंद पुराण, नागर खण्ड, उत्तरार्ध)

परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की अमृतवाणी : 
सत्संग के मुख्य अंश :
* कार्तिक मास के समान कोई मास नही, सतयुग के समान कोई युग नही, वेद के समान कोई शास्त्र नही और गंगा जी के सामान कोई तीर्थ नही |
* कार्तिक मास में पालने योग्य नियम :
* दीपदान करें, तुलसी वन या तुलसी के पौधे लगाये, तुलसी को सुबह आधा-एक गिलास पानी देना, स्वर्ण दान का फल देता है |
* भूमि पर शयन अथवा गद्दा हटाकर, सादा गुदड़ी बिछा कर तख़्त पर शयन तथा ब्रह्मचर्य का पालन करने से जीवात्मा का उद्धार होता है |
* उड़द, मसूर आदि भारी चीजों का त्याग तथा तिल का दान करें तथा आज कल नदिया शुद्ध नही है तो मानसिक स्नान नदी में कर लें |
* साधू-संतो का सत्संग, जीवन चरित्र का अनुसरण करके, मोक्ष प्राप्ति का इरादा बना ले |
* आंवले के वृक्ष की छाया में भोजन करने से एक वर्ष तक के अनगिनत पाप नष्ट हो जाते हैं, आंवले के उबटन से स्नान करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है, और अधिक प्रसन्नता मिलती है, संक्रांति, ग्रहण और रविवार को आंवले का उपयोग नही करना चाहिये |
* कार्तिक मास में अगर सभी दिन स्नान न कर पाए तो अंतिम ३ दिन (त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा) को सूर्योदय से पहले स्नान कर लें |
* अनजाने में जूठा खा लिया हो तो बाद में आंवला, बेल, ईख चबा लेने से जूठे के दोष से मुक्त हो जाता है |

Wednesday, 4 October 2017

शरद पूर्णिमा ( Sharad Purnima ) - ५ अक्टूबर २०१७

आरोग्य व पुष्टि देनेवाली खीर:-

शरद पूनम ( ५ अक्टूबर ) की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो | पानी वाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर बन गयी | जो दूध को जलाकर तथा रात को बादाम, पिस्ता आदि डाल के खीर खाते हैं उनको तो बीमारियाँ का सामना करना पड़ता है | उस खीर को महीन सूती कपड़े, चलनी या जाली से अच्छी तरह ढककर चन्द्रमा की किरणों में पुष्ट होने के लिए रात्रि ९ से १२ बजे तक रख दिया | बाद में जब खीर खायें तो पहले उसे देखते हुए २१ बार "ॐ नमो नारायणाय " जप कर लें तो वह औषधि बन जायेगी | इससे वर्षभर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति की सुरक्षा व प्रसन्नता बनी रहेगी |

इस रात को हजार काम छोडकर कम-से-कम १५ मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा लो तो हरकत नहीं | छत या मैदान में विद्युत् का कुचालक आसन बिछाकर चन्द्रमा को एकटक देखना | अगर मौज पड़े तो आप लेट भी सकते हैं | श्वासोच्छ्वास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, नि:संकल्प नारायण में विश्रांति पायें |

जो लोग निगुरे हैं, जिन लोगों के चित्त में वासना है उन लोगों को अकेलापन खटकता है।जिनके चित्त में राग, द्वेष और मोह की जगह पर सत्य की प्यास है उनके चित्त में आसक्ति का तेल सूख जाता है। आसक्ति का तेल सूख जाता है तो वासना का दीया बुझ जाता है। वासना का दीया बुझते ही आत्मज्ञान का दीया जगमगा उठता है। संसार में बाह्य दीया बुझने से अँधेरा होता है और भीतर वासना का दीया बुझने से उजाला होता है। इसलिए वासना के दीये में इच्छाओं का तेल मत डालो। आप इच्छाओं को हटाते जाओ ताकि वासना का दीया बुझ जाय और ज्ञान का दीया दिख जाय। वासना का दीया बुझने के बाद ही ज्ञान का दीया जलेगा ऐसी बात नहीं है। ज्ञान का दीया भीतर जगमगा रहा है लेकिन हम वासना के दीये को देखते हैं इसलिए ज्ञान के दीये को देख नहीं पाते।

कुछ सैलानी सैर करने सरोवर गये। शरदपूर्णिमा की रात थी। वे लोग नाव में बैठे। नाव आगे बढ़ी। आपस में बात कर रहे हैं कि, “यार ! सुना था, चाँदनी रात में जलविहार करने का बड़ा मज़ा आता है…. पानी चाँदी जैसा दिखता है…. यहाँ चारों और पानी ही पानी है। गगन में पूर्णिमा का चाँद चमक रहा है फिर भी मज़ा नहीं आता है।”

केवट उनकी बात सुन रहा था। वह बोलाः “बाबू जी ! चाँदनी रात का मजा लेना हो तो यह जो टिमटिमा रहा है न लालटेन, उसको फूँक मारकर बुझा दो। नाव में फानूस रखकर आप चाँदनी रात का मजा लेना चाहते हो? इस फानूस को बुझा दो।” फानूस को बुझाते ही नावसहित सारा सरोवर चाँदनी में जगमगाने लगा। …....तो क्या फानूस के पहले चाँदनी नहीं थी? आँखों पर फानूस के प्रकाश का प्रभाव था इसलिए चाँदनी के प्रभाव को नहीं देख पा रहे थे।

इसी प्रकार वासना का फानूस जलता है तो ज्ञान की चाँदनी को हम नहीं देख सकते हैं। अतः वासना को पोसो मत। - पूज्य बापूजी