"गुरु तेग बहादुर बोलिया सुनो सिक्खों बड़भागीया,
धड़ दीजै धर्म न छोड़िये।"
आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व 21 से 27 दिसंबर के बीच दसवीं पातशाही गुरु गोविंद सिंहजी का पूरा परिवार राष्ट्र व धर्म के लिए बलिदान हो गया था। ऐसा बलिदान देने वाली विभूतियों को हमारा शत्-शत् नमन।
माता गुर्जरी और दोनों छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को कैद कर, दिसम्बर महीने की रात भर ठंड में रखने के बाद सुबह जब वजीर खां के सामने पेश कर उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा गया, तो बिना किसी हिचकिचाहट के दोनों साहिबजादों ने ज़ोर से जयकारा लगाया “जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल”। यह देख सब दंग रह गये।
वजीर खां की मौजूदगी में ऐसा करने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सकता था लेकिन गुरुजी के नन्हें लाल, जिनकी आयु लगभग 8 साल और 6 साल थी, ऐसा करते समय एक पल के लिए भी नहीं डरे। सभा में मौजूद मुलाज़िमों ने साहिबजादों को वजीर खां के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा, इस पर दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया कि "हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के सामने भी सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे, यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया तो हम अपने दादा को क्या जवाब देंगे जिन्होंने धर्म के नाम पर सिर कलम करवाना सही समझा, लेकिन झुकना नहीं।"
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