"तरूवर, सरोवर, संतजन चौथा बरसे मेह,
परमार्थ के कारणे, चारों धरिया देह।"
अपने आदर्श जीवन से समाज को कृतार्थ करने वाली "तपोवनी मां" से एक बार हमने पूछा, "मां आपको तपोवन में किस-किस सिद्ध के दर्शन हुए?" हंसते हुए बोलीं, "अरे, मैं तो स्वयं ही सिद्ध हूं। मैं किसके दर्शन करूं? और शांत होकर बैठ गईं।"
धन्य है यह भारत भूमि जो सदैव पूज्य चरणों से भूषित होती रहती है।
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