उत्तराखंड में सात फरवरी को मां धारी देवी ने बरसाई कृपा। उस दिन हमने सुबह लगभग 11:30 बजे मंदिर के अंदर दर्शनों के लिए प्रवेश किया, पौने बारह बजे अनाउंसमेंट सुनाई दिया कि चमोली में ग्लेशियर फट गया है और पानी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है, सभी लोग जल्दी से जल्दी मंदिर खाली कर दें। उस समय मंदिर के अंदर मां की डोली को सजाकर, पूजन-अर्चन के बाद कंधों पर उठाकर दूसरे गांव ले जाने की तैयारी थी। जैसे ही घोषणा हुई और लोगों ने डोली को कंधे पर उठाना चाहा तो आश्चर्य डोली का वजन इतना ज्यादा हो गया कि डोली हिलाई भी ना जा सकी। थोड़ी ही देर बाद माता की डोली को आराम से कंधों पर उठा लिया गया और रात दस बजे जब पानी मंदिर तक पहुंचा तो उसका स्तर काफी कम हो चुका था। मां धारी देवी मंदिर, बद्रीनाथ मार्ग पर श्रीनगर व रूद्रप्रयाग के बीच में स्थित है।
जानने योग्य बात यह है कि मां धारी देवी का प्राचीन मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित था परंतु डैम बनाने के लिये मंदिर को वहां से हटा दिया गया था। उत्तराखंड के निवासियों का मानना है कि 2013 में आई केदारनाथ आपदा मां के कोप का ही परिणाम थी। आपदा के बाद सरकार ने भी अपनी भूल को स्वीकार करते हुए, जिस जगह पर माता का प्राचीन मंदिर था, उसी जगह पर फिर से मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। आज यह जगह अलकनंदा के बीच में पड़ती है। भारतीय संस्कृति को हमारा शत्-शत् प्रणाम है, जहां भक्तों की आस्था और श्रद्धा ईश्वरीय शक्तियों को भी अपने प्रेम में बांध लेती है।
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