Monday, 20 June 2016

दक्षिणायन

हिंदु पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं अर्थात एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन या अयन “ उत्तरायण और दक्षिणायन ” कहा जाता है। कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब तक के समय को उत्तरायण कहते हैं। यह समय छ: माह का होता है। तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। इस प्रकार यह दोनो अयन 6 - 6 माह के होते हैं।

 


दक्षिणायन का प्रारंभ 20 से 22 जून के बीच माना जाता है। इस दिन सूर्य का उत्तरायण से दक्षिणायन में प्रवेश होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि है। इस समय रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं। दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है।

 

दक्षिणायन व्रतों एवं उपवास का समय होता है। इसमें विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं परन्तु आध्यात्मिक उन्नति के लिये यह बहुत ही उत्तम समय है। दक्षिणायन में किये गये जप - तप, मंत्र अनुष्ठान, मौन व दान का कई गुना अधिक फल होता है। चतुर्मास भी दक्षिणायन में ही आता है।

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