जिसने भौतिक विकास के साथ – साथ आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दिया है वही सरलता के साथ आगे बढ़ सकता है। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार आत्मतीर्थ में जाने के लिये सद्गुरु की आवश्यकता होती है। हमारी बिखरी हुई चेतना, वृत्तिओं, जीवन शैली, बिखरे हुए सर्वस्व को सुव्यवस्थित करके सुख – दु:ख के सिर पर पैर रख कर परमात्मा तक पहुँचाने की व्यवस्था करने में जो सक्षम हैं और अकारण दयालु है, ऐसे सद्गुरु रूपी भगवान की आवश्यकता समाज को बहुत है। ऐसे सद्गुरु अगर एकांत में चले जायें तो फिर गड़रिया – प्रवाह ( विचारहीन, दिशाहीन होकर देखादेखी एक दूसरे का अनुसरण करना ) चलता रहेगा। अत: जो सचमुच में मोक्ष पाना चाहता है ऐसे जिज्ञासु को पूरे मन व अत्यन्त आदर के साथ सद्गुरु की शरण में जाना चाहिये और उनसे विनम्र व निष्कपट होकर आत्मविद्या का लाभ लेना चाहिये। #पूज्यबापूजी
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