5 अप्रैल - श्रीरामनवमी
परम पूज्य संत श्रीआशाराम बापूजी सत्संग में बताते हैं कि रामजी को बचपन में दीक्षा मिली, बाद में शिक्षा के लिये गुरुकुल गये। रामजी सदैव सारगर्भित, मधुर व शास्त्रसम्मत बोलते थे। दूसरों को मान देने वाली वाणी बोलते थे और अपनों से छोटों का उत्साह बढ़ाते थे। राजदरबार में कभी वैमनस्य हो जाता तो रामजी किसी एक पक्ष को यह नहीं बोलते कि “तुम गलत हो, यह सही है।“ नहीं, जो सही है उनके पक्ष में रामजी उदाहरण देते, इतिहास बताते, पूर्वजनों की बात सुनाते। जो गलत होते वे अपने-आप उचित बात समझ जाते।
संसार–ताप से तप्त जीवों को,मर्यादा भूलकर राग-द्वेष और ईर्ष्या की अग्नि में स्वयं को जलाने वाले मानव को, मर्यादा से जीकर शीतलता पाने का संदेश देने वाले अवतार मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामावतार की आप सभी को खूब-खूब बधाई।
भगवान श्रीराम के प्रमुख ग्रन्थ "श्रीरामचरित मानस" में कुछ चौपाइयां ऐसी हैं जिनका विपत्तियों तथा संकट से बचाव और ऋद्धि-सिद्ध के लिए मंत्रोच्चारण के साथ पाठ किया जाता है। इन चौपाइयों को मंत्र की तरह विधि-विधान पूर्वक एक सौ आठ बार हवन की सामग्री से सिद्ध किया जाता है। हवन के लिये चंदन के बुरादे, जौ, चावल, शुद्ध केसर, शुद्ध घी, तिल, शक्कर, अगर, तगर, कपूर, नागर मोथा, पंचमेवा आदि का प्रयोग निष्ठापूर्वक मंत्रोच्चार के साथ करें:-
धन सम्पत्ति की प्राप्ति हेतु-
"जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख सम्पत्ति नानाविधि पावहिं।।"
विद्या प्राप्ति के लिए-
"गुरु ग्रह गए पढ़न रघुराई।
अलपकाल विद्या सब आई।।"
ज्ञान प्राप्ति के लिए-
"छिति जल पावक गगन समीरा।
पंचरचित अति अधम शरीरा।।"
रोगों से बचनें के लिए-
"दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम काज नहिं काहुहिं व्यापा।।"
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