Friday, 28 October 2016

Happy Dhanteras

28 अक्टूबर 2016 - धनतेरस।

 
धनतेरस की शाम को घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की और मुख करके यमराज के लिये दो दीपदान करें व निम्न मंत्र बोलें :-
  • ॐ यमाय नम:
  • ॐ धर्मराजाय नम:
  • ॐ मृत्यवे नम:
  • ॐ अन्तकाय नम:
  • ॐ कालाय नम:
 
शाम को तुलसीजी के आगे दीपक रखें इससे दरिद्रता मिटती है।
 
 

Wednesday, 26 October 2016

रमा एकादशी – 26 अक्टूबर 2016 - श्री माँ महंगीबाजी का महानिर्वाण दिवस

रमा एकादशी – 26 अक्टूबर 2016
श्री माँ महंगीबाजी का महानिर्वाण दिवस।

 

 

 



हर एकादशी को “श्री विष्णुसहस्रनाम” का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।
“राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने।।“ एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से श्री विष्णुसहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l...


एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए। एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। रमा एकादशी का व्रत बड़े – बड़े पापों को हरनेवाला, चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाला है |

युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! मुझ पर आपका स्नेह है, अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! कार्तिक (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आश्विन) के कृष्णपक्ष में "रमा" नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है । यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरनेवाली है ।

पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे । अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करने वाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई । राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया । एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि “एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे।“ इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा : “प्रिये ! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो ।“

चन्द्रभागा बोली : “ प्रभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते । प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी । इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये।“

शोभन ने कहा : “प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है । मैं भी उपवास करुँगा । दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा।“

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : “इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते - होते उनका प्राणान्त हो गया । राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया । चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।

नृपश्रेष्ठ ! उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए। वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे। एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये, जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये । राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये । शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया । फिर क्रमश: अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा ।

सोमशर्मा ने कहा : राजन् ! वहाँ सब कुशल हैं । आश्चर्य है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसी ने भी नहीं देखा होगा । बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?

शोभन बोले : द्विजेन्द्र ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है, उसी का व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है । ब्रह्मन् ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है । आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा ।

शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।

सोमशर्मा बोले : “शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा । इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है । तुम उसको स्थिर बनाओ।“

चन्द्रभागा ने कहा : “ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है । आप मुझे वहाँ ले चलिये । मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी।“

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : “राजन् ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये । वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली । इसके बाद वह पति के समीप गयी । अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया । तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा: ‘नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये । जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी, तबसे लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा।“

“नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार “रमा एकादशी” के व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है । राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है । यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है।“

Saturday, 22 October 2016

रविपुष्यामृत योग

23 अक्टूबर 2016 - रविपुष्यामृत योग( सूर्योदय से रात्रि 08:40 तक )


बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें और दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलें। रविवार के साथ पुष्य नक्षत्र का संयोग "रविपुष्यामृत योग" कहलाता है। यह योग मंत्र सिद्धि व औषध-प्रयोग के लिये विशेष फलदायी है। इस योग में किया गया जप, तप, ध्यान, दान महाफलदायी होता है।



Tuesday, 18 October 2016

तुम्हारी खुद की निष्ठा

कल शाम पूज्य गुरुदेव की कृपा से उच्चकोटि के संत के दर्शन सान्निध्य का लाभ मिला। सत्संग हुआ। सभी अपनी जिज्ञासा व्यक्त कर रहे थे। हमसे भी अपनी जिज्ञासा व्यक्त करने को कहा गया। हमने पूछा कि ईश्वर कृपा या गुरु कृपा तो सबके ऊपर होती है पर किसी-किसी के ऊपर जो "विशेष कृपा" होती है उसका क्या कारण होता है?

संत मुस्कुराये और बोले, इसका कारण है - "तुम्हारी खुद की निष्ठा"। गुरु के प्रति जिसकी जितनी "निष्ठा" उतना ही वह "गुरुकृपा" का अधिकारी। किसी भी परिस्थिति में कोई भी गुरु के प्रति शिष्...य की निष्ठा को हिला ना सके शिष्य को ऐसा होना चाहिये।"

आज ही हमें आनंदमूर्ति गुरुमाँ का यह VIDEO मिला, जिसमें उन्होने भी यही बात कही है।






 

Saturday, 15 October 2016

Sharad Purnima

शरद पूर्णिमा - 15 अक्टूबर

आरोग्य व पुष्टि देनेवाली खीर:-

शरद पूनम ( १५ अक्टूबर ) की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो | पानी वाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर बन गयी | जो दूध को जलाकर तथा रात को बादाम, पिस्ता आदि डाल के खीर खाते हैं उनको तो बीमारियाँ का सामना करना पड़ता है | उस खीर को महीन सूती कपड़े, चलनी या जाली से अच्छी तरह ढककर चन्द्रमा की किरणों में पुष्ट होने के लिए रात्रि ९ से १२ बजे तक रख दिया | बाद में जब खीर खायें तो पहले उसे देखते हुए २१ बार "ॐ नमो नारायणाय " जप कर लें तो वह औषधि बन जायेगी | इससे वर्षभर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति की सुरक्षा व प्रसन्नता बनी रहेगी |
इस रात को हजार काम छोडकर कम-से-कम १५ मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा लो तो हरकत नहीं | छत या मैदान में विद्युत् का कुचालक आसन बिछाकर चन्द्रमा को एकटक देखना | अगर मौज पड़े तो आप लेट भी सकते हैं | श्वासोच्छ्वास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, नि:संकल्प नारायण में विश्रांति पायें |

जो लोग निगुरे हैं, जिन लोगों के चित्त में वासना है उन लोगों को अकेलापन खटकता है।जिनके चित्त में राग, द्वेष और मोह की जगह पर सत्य की प्यास है उनके चित्त में आसक्ति का तेल सूख जाता है। आसक्ति का तेल सूख जाता है तो वासना का दीया बुझ जाता है। वासना का दीया बुझते ही आत्मज्ञान का दीया जगमगा उठता है। संसार में बाह्य दीया बुझने से अँधेरा होता है और भीतर वासना का दीया बुझने से उजाला होता है। इसलिए वासना के दीये में इच्छाओं का तेल मत डालो। आप इच्छाओं को हटाते जाओ ताकि वासना का दीया बुझ जाय और ज्ञान का दीया दिख जाय। वासना का दीया बुझने के बाद ही ज्ञान का दीया जलेगा ऐसी बात नहीं है। ज्ञान का दीया भीतर जगमगा रहा है लेकिन हम वासना के दीये को देखते हैं इसलिए ज्ञान के दीये को देख नहीं पाते।

कुछ सैलानी सैर करने सरोवर गये। शरदपूर्णिमा की रात थी। वे लोग नाव में बैठे। नाव आगे बढ़ी। आपस में बात कर रहे हैं कि, “यार ! सुना था,  चाँदनी रात में जलविहार करने का बड़ा मज़ा आता है…. पानी चाँदी जैसा दिखता है…. यहाँ चारों और पानी ही पानी है। गगन में पूर्णिमा का चाँद चमक रहा है फिर भी मज़ा नहीं आता है।”
केवट उनकी बात सुन रहा था। वह बोलाः “बाबू जी ! चाँदनी रात का मजा लेना हो तो यह जो टिमटिमा रहा है न लालटेन, उसको फूँक मारकर बुझा दो। नाव में फानूस रखकर आप चाँदनी रात का मजा लेना चाहते हो? इस फानूस को बुझा दो।” फानूस को बुझाते ही नावसहित सारा सरोवर चाँदनी में जगमगाने लगा। …....तो क्या फानूस के पहले चाँदनी नहीं थी? आँखों पर फानूस के प्रकाश का प्रभाव था इसलिए चाँदनी के प्रभाव को नहीं देख पा रहे थे।

इसी प्रकार वासना का फानूस जलता है तो ज्ञान की चाँदनी को हम नहीं देख सकते हैं। अतः वासना को पोसो मत। - पूज्य बापूजी

Wednesday, 12 October 2016

Rishikesh - Suprachar Vahan Rally

देवभूमि ऋषिकेश, उत्तराखण्ड में कल विजयादशमी (दशहरे) के दिन पूज्य संतश्री आशारामजी बापू के साधकों ने "वाहन रैली" निकाली। आई.डी.पी.एल. सिटी गेट से साधकों द्वारा पूज्य बापूजी की आरती के साथ रैली का शुभारंभ हुआ। जो पास के गावों से होती हुई ऋषिकेश शहर पहुँची। ऋषिकेश में दशहरे की भीड़ के बीच जिधर से भी वाहनों का काफिला गुजरता लोग प्रेम से रास्ता दे देते। देवभूमि को भी पावन करती हुई गुरुभक्तों की इस रैली का समापन रघुनाथ मंदिर पर हुआ।

 






Monday, 10 October 2016

Newspaper Coverage: Suprachar Vahan Rally

तीर्थनगरी हरिद्वार में कल 9 अक्टूबर को संतश्री आशारामजी बापू के साधकों ने निकाली सुप्रचार वाहन रैली

सड़कों पर लगा जाम।

 

प्रमुख समाचार पत्रों ने लिया कवरेज।

 

Newspaper: Pradhan Times:


Newspaper: Amar Ujala:

 

Newspaper: Dainik Jagran:

 

Newspaper: Rashtriya Sahara:

Durga Ashtami - Suprachar Vahan Rally

धर्मनगरी हरिद्वार में कल 9 अक्टूबर, दुर्गाष्टमी के अवसर पर संतश्री आशारामजी बापू के भक्तों द्वारा सुप्रचार वाहन रैली निकाली गई। हरीपुर कलां स्थित आश्रम से पूज्य बापूजी की आरती के बाद वाहनों का काफिला निकला जिसने धर्मनगरी की सड़कों पर लंबा जाम लगा दियाा। भक्तों द्वारा हिन्दू धर्म का जम कर प्रचार हुआ। आश्रम के साहित्य का खूब वितरण किया गया। निगुरों ने भी माना कि बापूजी निर्दोष हैं। उन्हें शीघ्र रिहा किया जाना चाहिये। आर्यनगर चौक, ज्वालापुर में आरती के साथ ही रैली का समापन हुआ।


 




 

Tuesday, 4 October 2016

4 October - Mangalwari Chaturthi

4 अक्टूबर- मंगलवारी चतुर्थी (दोपहर 12.37 से 5 अक्टूबर सूर्योदय तक)

 

समस्त पुण्य कर्मों का, सूर्यग्रहण के समान फल देने वाली, इस तिथि का अवश्य लाभ लें।

 
 

Glimpses of Self Realization Diwas at AshramHaridwar

जीवन की सर्वोपरि उपलब्धि है - "आत्म - साक्षात्कार"।

 

संत श्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया पूज्य बापूजी का 53वां "आत्म - साक्षात्कार दिवस"।

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 

 

Saturday, 1 October 2016

2 October - Atma Sakshatkar

2 अक्टूबर - संतश्री आशारामजी बापू आत्म साक्षात्कार दिवस

 

ऐसा होता है आत्मसाक्षात्कार - पूज्य बापूजी

 

आत्मसाक्षात्कार मतलब क्या ?

आत्मसाक्षात्कार मतलब जो सत् है, चित् है, आनंद है और साक्षात् है | कल्पित ‘मैं – मेरा’ ज्ञान द्वारा उड़ जाये और जो वास्तविक है, साक्षात् है, उसी में अपने ‘मैं’ का साक्षात्कार करोगे तो इनका अस्तित्व और अपने ‘मैं’ का अस्तित्व सब एकरूप दिखेगा | अर्जुन ने पूछा था : " स्थितप्रज्ञस्य का भाषा ...."
भगवान् श्रीकृष्ण बोले : " प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ ....."

 

‘हे अर्जुन ! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभाँति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है |’ ( गीता :२.५५ )

 

बोले फिर तो जड़ हो जायेगा | नहीं, वह चैतन्य हो जायेगा ! आत्मसाक्षात्कार के बाद जड़ नहीं होता | जीवन जीने का मजा तो आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आता है, अन्यथा तो बैलगाड़ियों में बँधे बैल की तरह मजदूरी करके मरना है | साक्षात्कारी पुरुष की हाजरी मात्र से वातावरण आनंदित हो जाता है | जो श्रीकृष्ण में चम – चम चमकता है, भगवान शिव में समाधि – सुख देता है, माँ जगदम्बा में आदि शक्ति रूप से उभरता है, वही साँई लीलाशाहजी बापू में ज्ञान देता है और आशाराम में छुपा हुआ जागृत होता है, उसका नाम है आत्मसाक्षात्कार | यदि कोई केवल तीन मिनट के लिए आत्मसाक्षात्कार की अवस्था में स्थित हो जाय तो उसका दुबारा जन्म नहीं होता, वह सदा के लिए जन्म - मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है| अरे ! मुक्त क्या होता है उसका यह अनुभव हो जाता है :-

 

" मुझे मेरी मस्ती कहाँ ले के आयी, जहाँ मेरे अपने सिवा कुछ नहीं है |
पता जब चला मेरी हस्ती का मुझको, सिवा मेरे अपने कहीं कुछ नहीं है ||"

 

अपने भूतकाल को याद कर – करके विचारों के जाल में कब तक फँसते रहोगे ? मन की मान्यताओं में कब तक उलझते रहोगे ? सब बंधनों को काटकर उठ खड़े हो, मुक्त हो जाओ | शरीर एवं मन के किले को छोडकर आत्मा के आकाश में विहार करो | ऐसा ज्ञान पा लो कि तुम जीते - जी ही काल से परे हो जाओ और काल सिर कूटता रह जाय | ऐसा ज्ञान पाना कठिन नहीं है किंतु लोगों को अज्ञान को छोड़ने में, अपनी मान्यताओं को तोड़ने में कठिनाई लगती है | अज्ञान और मान्यताओं में बहने की बेवकूफी सदियों की है अत: उसे छोड़ना कठिन लगता है| नहीं तो ईश्वर को पाने में क्या कठिनाई है ! ईश्वर तो अपना आत्मस्वरूप है |

 

आप बस अपना उद्देश्य बना लो !

ईश्वरप्राप्ति में जो सुख है और समाज का भला है उसकी बराबरी में कुछ नहीं है | अपने स्वरूप का, अपने आत्मा का पता चल जाना यह बड़े – में – बड़ी उपलब्धि है | इसके अतिरिक्त जगत की सारी उपलब्धियाँ दिखनेमात्र की हैं | ईश्वर के सिवाय कहीं भी मन लगाया तो अंत में रोना ही पड़ेगा | भगवान को पाने की महत्ता समझ में आ जाये और भगवान को पाने का इरादा पक्का हो जाये तो आपकी ९५ प्रतिशत साधना हो गयी ! बाकी ५ प्रतिशत में ३ प्रतिशत आपकी भावना, श्रद्धा और २ प्रतिशत आपकी साधना | केवल उद्देश्य बना लो ईश्वरप्राप्ति का | बस हो गया.........।

 

“ पूर्ण गुरु कृपा मिली, पूर्ण गुरु का ज्ञान।
आसुमल से हो गये, साईं आशाराम।।“