Wednesday, 28 June 2017

Sadhak Anubhav: How the entire family survived by the grace of Asharam Ji Bapu

साधकों का अनुभव - "गुरूकृपा से पूरे परिवार को मिला जीवनदान"

How the entire family survived by the grace of Asharam Ji Bapu

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Tuesday, 27 June 2017

तेजस्वी विद्यार्थी देश की नींव

"तेजस्वी विद्यार्थी देश की नींव"

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में आयोजित 'विद्यार्थी उज्जवल भविष्य निर्माण शिविर' में बच्चों ने हंसते-खेलते पाईं जीवन को उन्नत करनेे की कुंजियाँ। साथ ही सीखी विद्यार्थी जीवन की उचित दिनचर्या

Sunday, 25 June 2017

साध्वी तरुणा बहन के सान्निध्य में एक दिवसीय "विद्यार्थी उज्जवल भविष्य निर्माण शिविर"

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में आज साध्वी तरुणा बहन के सान्निध्य में एक दिवसीय "विद्यार्थी उज्जवल भविष्य निर्माण शिविर" का आयोजन किया गया। जिसमें बच्चे परमात्म ध्यान में तो डूबे ही साथ ही विभिन्न आध्यात्मिक खेल भी खेले। बच्चों ने बड़ दादा व आश्रम की गाय माता की प्रदक्षिणा भी की। दिन भर में बच्चों को सफल विद्यार्थी बनने के लिये पूज्य बापूजी द्वारा बताई गई वैदिक संस्कृति की अनेक युक्तियों से अवगत कराया गया। इस अवसर पर बच्चों ने लघु नाटिका प्रस्तुत की व पुरस्कार पाये।










Saturday, 24 June 2017

Sadhvi Taruna Bahen Vidyarthi Bhavishya Ujjwal Nirman Shivir at AshramHaridwar


संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में, 
साध्वी तरुणा बहन के सान्निध्य में 
"विद्यार्थी उज्जवल भविष्य निर्माण शिविर"।


दिनांक - 25 जून, रविवार

समय - सुबह 9 से शाम 5 बजे तक

Wednesday, 21 June 2017

International Yoga Day - Benefits of Shavasana

Param Pujya Saint Shri Asharam Bapu Ji states in HIS discourses that "Union with GOD is Yog. It is not merely a physical exercise but to know the Supreme Power through it is actual YOG." 

Must watch the benefits of Shavasana: International Yoga Day


Tuesday, 20 June 2017

Press Coverage: Garbh Sanskar Kendra - Mahila Utthan Mandal

An appreciable effort by Mahila Utthan Mandal

संतश्री आशारामजी बापू की प्रेरणा से "महिला उत्थान मण्डल" द्वारा तेजस्वी व दिव्य संतान प्राप्ति हेतु देश भर में चलाये जा रहे "गर्भ संस्कार केन्द्र"

Press Coverage:

Yogini Ekadashi - योगिनी एकादशी

योगिनी एकादशी - 20 जून 2017


युधिष्ठिर ने पूछा : वासुदेव ! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले : नृपश्रेष्ठ ! आषाढ़ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार ज्येष्ठ ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े - बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है ।

अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहने वाले हैं । उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था । हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था । वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था । एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका । इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे । उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की । जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा : ‘यक्षों ! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है ?’

यक्षों ने कहा: राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है । यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया । वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया । उसे देखकर कुबेर बोले : ‘ओ पापी ! अरे दुष्ट ! ओ दुराचारी ! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा ।’

कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया । कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई । तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया । वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ । पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया । मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा : ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया ?’

यक्ष बोला : मुने ! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ । मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था । एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया । मुनिश्रेष्ठ ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये ।

मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ । तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो । इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया । उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया ।

नृपश्रेष्ठ ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है । ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है । इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।

Monday, 19 June 2017

Rishi Prasad Sankalp by Shri Satish Bhai Ji at AshramHaridwar

संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में 18 जून को श्री सतीश भाईजी के सत्संग में साधकों ने "ऋषि प्रसाद" को घर-घर पहुंचाने का "शुभ संकल्प" भी लिया।








Saturday, 17 June 2017

Satish Bhai Ji Satsang at AshramHaridwar

परम पूज्य संतश्री आशारामजी बापू के 
शिष्य श्री सतीश भाईजी द्वारा आश्रम हरिद्वार में सत्संग

दिनांक - 18 जून, रविवार

समय - शाम 5 बजे से



Thursday, 15 June 2017

Saints - The Real Wealth

Hindu Saints make Hindu Dharma Great & Glorious. In fact they are our only real wealth. The world bows in front of them. 


Tuesday, 13 June 2017

कैसे जी सकते हैं स्वस्थ व लम्बा जीवन

"धर्म की पहचान, संतों का ज्ञान"


#हिन्दू_धर्म_की_महानता हिन्दू संतों से ही है यह बात अब पूरा विश्व स्वीकार कर रहा है। विश्व बंधुत्व की बात हो या आपसी भाईचारे की, मानवमात्र के स्वास्थ्य की बात हो या सर्वत्र प्रेम व सौहार्द की बात हिन्दू धर्म में सभी का समावेश है। एक हिन्दू ही यह प्रार्थना कर सकता है :-
"सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भागभवेत।

ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः।"


अर्थात् "सभी सुखी होंं, सभी निरोगी रहें, सभी मङ्गलमय घटनाओं के साक्षी बनें तथा किसी को भी दुःख का भागी ना बनना पड़े। सर्वत्र शांति का साम्राज्य हो।"

"कैसे जी सकते हैं स्वस्थ व लम्बा जीवन"- जानिये बापूजी से:-


Friday, 9 June 2017

Women Empowerment Camp

Hindu Saint Asharam Bapu Ji is contributing tremendously to the society. 

Bapuji's "Women Empowerment Camps" are giving a great message. 

See details:

Sunday, 4 June 2017

Nirjala Ekadashi

निर्जला एकादशी

04 जून 2017 रविवार को सुबह 08:04 से 05 जून 2017 सोमवार को सुबह 09:42 तक एकादशी है ।

विशेष ~ 05 जून 2017 सोमवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।

युधिष्ठिर ने कहा : जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा सत्यवतीनन्दन व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं ।

तब वेदव्यासजी कहने लगे : दोनों ही पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन न करे । द्वादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र हो फूलों से भगवान केशव की पूजा करे । फिर नित्य कर्म समाप्त होने के पश्चात् पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच में भी एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए ।

यह सुनकर भीमसेन बोले : परम बुद्धिमान पितामह ! मेरी उत्तम बात सुनिये । राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ किन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जायेगी ।

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा : यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशीयों के दिन भोजन न करना ।

भीमसेन बोले : महाबुद्धिमान पितामह ! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता, फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ? मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है । इसलिए महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ । जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये । मैं उसका यथोचित रुप से पालन करुँगा ।

व्यासजी ने कहा : भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो । केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है । एकादशी को सूर्यौदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्यौदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है । तदनन्तर द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे । इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे । वर्षभर में जितनी एकादशीयाँ होती हैं, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि: ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है ।’

एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते । अंतकाल में पीताम्बरधारी, सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करनेवाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आखिर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं । अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास और श्रीहरि का पूजन करो । स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब इस एकादशी व्रत के प्रभाव से भस्म हो जाता है । जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है । उसे एक एक प्रहर में कोटि कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है । मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है । निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है । जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है ।

जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान करेंगे, वे परम पद को प्राप्त होंगे । जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं ।

कुन्तीनन्दन ! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है । पर्याप्त दक्षिणा और भाँति भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए । ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं । जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है । निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए । जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है । जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है । चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है । पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि : ‘मैं भगवान केशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा ।’ द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए । गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे 

देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक ।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥

‘संसार सागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये।’

भीमसेन ! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए । उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है । तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे । जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है ।

यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया । तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई ।

Friday, 2 June 2017

गंगा दशहरा - 3 जून 2017

दशहरा "दश" अर्थात् दस "हरा" अर्थात् "हरने वाला"। तीन शारीरिक, चार वाचिक व तीन मानसिक पापों को हरने वाले गंगा दशहरे के दिन गंगा स्नान अवश्य करना चाहिये। भविष्य पुराण में लिखा है कि जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगाजी में खड़े होकर दस बार "ॐ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा" अर्थात् "गंगा दशहरा स्त्रोत" का पाठ करता है, चाहे वह दरिद्र हो या असमर्थ हो वह भी माँ गंगा की पूजा के पूर्ण फल को पाता है। इस दिन गंगा स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप, उपासना और उपवास किया जाता है।

यदि कोई मनुष्य गंगाजी तक जाने में असमर्थ है तो वह अपने घर के पास ही किसी नदी या तालाब में माँ गंगा का ध्यान करते हुए स्नान कर ले अथवा घर में ही पानी में गंगाजल डाल ले व गंगाजी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन कर निम्न मंत्र पढे :-
"ॐ नम: शिवायै नारायणायै दशहरायै गंगायै नम:"

पूज्य बापूजी बता रहे हैं कि किस प्रकार इस दिन गंगा स्नान करने से दस प्रकार के पाप निवृत हो जाते हैं 

Thursday, 1 June 2017

Women Empowerment - Nari Tu Narayani

One more marvellous effort for "Women Empowerment" by Asharam Bapu Ji 's Mahila Utthan Mandal
"Powerful Divine Women, Strong Nation."
#YuvaShakti4NewIndia

Pradhan Times News Coverage: