Thursday, 30 June 2016

Yogini Ekadashi - ( योगिनी एकादशी )

विशेष ~ 30 जून 2016 गुरुवार को योगिनी एकादशी (स्मार्त) है एवं 01 जुलाई 2016 शुक्रवार को योगिनी एकादशी (भागवत) है।
1 जुलाई योगिनी एकादशी (भागवत)



 
युधिष्ठिर ने पूछा : वासुदेव ! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।

भगवान श्रीकृष्ण बोले नृपश्रेष्ठ ! आषाढ़ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार ज्येष्ठ ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है ।

अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं । उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था । हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था । वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था । एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका । इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे । उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की । जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा : ‘यक्षों ! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है ?’

यक्षों ने कहा: राजन् ! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है । यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया । वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया । उसे देखकर कुबेर बोले : ‘ओ पापी ! अरे दुष्ट ! ओ दुराचारी ! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा ।’

कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया । कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई । तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया । वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ । पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया । मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा : ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया ?’

यक्ष बोला मुने ! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ । मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था । एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया । मुनिश्रेष्ठ ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये।

मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ । तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो । इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया । उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया ।

नृपश्रेष्ठ ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है । ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है । इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।

Wednesday, 29 June 2016

Food for Thought by H. H. Asharam Bapu Ji

जिसने भौतिक विकास के साथ – साथ आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दिया है वही सरलता के साथ आगे बढ़ सकता है। पुराणों और शास्त्रों के अनुसार आत्मतीर्थ में जाने के लिये सद्गुरु की आवश्यकता होती है। हमारी बिखरी हुई चेतना, वृत्तिओं, जीवन शैली, बिखरे हुए सर्वस्व को सुव्यवस्थित करके सुख – दु:ख के सिर पर पैर रख कर परमात्मा तक पहुँचाने की व्यवस्था करने में जो सक्षम हैं और अकारण दयालु है, ऐसे सद्गुरु रूपी भगवान की आवश्यकता समाज को बहुत है। ऐसे सद्गुरु अगर एकांत में चले जायें तो फिर गड़रिया – प्रवाह ( विचारहीन, दिशाहीन होकर देखादेखी एक दूसरे का अनुसरण करना ) चलता रहेगा। अत: जो सचमुच में मोक्ष पाना चाहता है ऐसे जिज्ञासु को पूरे मन व अत्यन्त आदर के साथ सद्गुरु की शरण में जाना चाहिये और उनसे विनम्र व निष्कपट होकर आत्मविद्या का लाभ लेना चाहिये। #पूज्यबापूजी

Tuesday, 28 June 2016

Miracle @ AshramHaridwar

आज परम पूज्य संतश्री आशारामजी बापू आश्रम हरिद्वार, में साधकों द्वारा जप करते हुए तोरियाँ (सब्ज़ी) काटते समय उन पर उभरा “ॐ”। ये हैं पूज्य बापूजी द्वारा दिये गये संस्कार कि चाहे भोजन बनाओ चाहे खाओ अर्थात कुछ भी करो परंतु भगवान के नाम का स्मरण सतत होता रहे। इसका प्रभाव जड़ चीज़ों पर भी साफ देखा जा सकता है। अब #बिकाऊमीडिया इस विषय में कुछ कहे या ना कहे पर सच तो सच ही है।

Monday, 27 June 2016

Food for Thought by H. H. Asharam Bapu Ji

ध्यान से प्राप्त शांति तथा आध्यात्मिक बल की सहायता से जीवन की जटिल से जटिल समस्याओं को भी बड़ी सरलता से सुलझाया जा सकता है और परमात्मा का साक्षात्कार भी किया जा सकता है। पूज्य बापूजी बताते हैं : “ चार अवस्थाएँ होती हैं – घन सुषुप्ति (पत्थर आदि ), क्षीण सुषुप्ति ( पेड़-पौधे आदि ), स्वपनावस्था ( मनुष्य, देव, गंधर्व आदि ) और जाग्रत अवस्था ( जिस ने अपने शुद्ध, बुद्ध, चैतन्यस्वभाव को जान लिया )। आधा घंटा परमात्मा के ध्यान में डूबने से जो शांति, आत्मिक बल व धैर्य आता है उससे एक सप्ताह तक संसारी समस्याओं से जूझने की ताकत आ जाती है। ध्यान में लग जाने से अद्भुत शक्तियाँ प्रकट होने लगती हैं। अत: ध्यान करके अपनी  वृत्तियों को सूक्ष्म करने का प्रयास करना चाहिये।

Food for Thought by H. H. Asharam Bapu Ji

जिस दिन ब्रह्मज्ञानी गुरु द्वारा शिष्य को दीक्षा मिल जाती है, उस दिन से गुरुकृपा हर क्षण उसके साथ होती है। गुरु उसकी निगरानी रखते हैं, उत्थान कराते हैं, गिरने से बचाते हैं, खतरों से चेताते हैं और हर परिस्थिति में उसकी रक्षा करते हैं। संसार के झंझटों से तो क्या, जन्म – मरण से भी मुक्ति दिला देते हैं परंतु शर्त केवल इतनी है कि शिष्य गुरु में दोष दर्शन करने वाला, गुरु से गद्दारी करने वाला न हो। गुरुकृपा उसी पर होती है जो शिष्यत्व के गुण श्रद्धा, संयम, सत्यता, निरहंकार व प्रेम को अपने दिल में संभाल कर रखता है। #पूज्यबापूजी

Saturday, 25 June 2016

26 जून 2016 - रविवारी सप्तमी

26 जून - रविवारी सप्तमी (दोपहर 2-21 से 27 जून सूर्योदय तक)।
इस दिन किये गये जप - ध्यान का लाख गुना फल होता है ।
रविवार सप्तमी के दिन अगर कोई नमक - मिर्च बिना का भोजन करे और सूर्य भगवान की पूजा करे , तो उसकी घातक बीमारियाँ दूर हो सकती हैं। अगर बीमार व्यक्ति यह ना कर पाये तो कोई और बीमार व्यक्ति के लिए यह व्रत कर सकता हैे | इस दिन सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिये।
सूर्य पूजन विधि:-
१) सूर्य भगवान को तिल के तेल का दिया जला कर दिखाएँ , आरती करें |
२) जल में थोड़े चावल, गुड, लाल फूल या लाल कुमकुम मिला कर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें |
सूर्य अर्घ्य मंत्र:-
1. ॐ मित्राय नमः।
2. ॐ रवये नमः।
3. ॐ सूर्याय नमः।
4. ॐ भानवे नमः।
5. ॐ खगाय नमः।
6. ॐ पूष्णे नमः।
7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
8. ॐ मरीचये नमः।
9. ॐ आदित्याय नमः।
10. ॐ सवित्रे नमः।
11. ॐ अर्काय नमः।
12. ॐ भास्कराय नमः।
13. ॐ श्रीसवितृ-सूर्यनारायणाय नमः।

Friday, 24 June 2016

Food for Thought by H. H. Asharam Bapu Ji

 

 

He who sees the Supreme Lord dwelling alike in all beings, the Imperishable in things that perish, he sees indeed. For seeing the Lord as the same, everywhere present, he does not destroy the self by the self and thus he goes to the highest goal.

Thursday, 23 June 2016

Food for Thought by H. H. Asharam Bapu Ji



ईश्वर की तरफ चलने का पक्का निश्चय हो गया तो समझ लो कि पुण्य उदय हो गये। जीवन में आत्मलाभ से बढ़ कर कोई लाभ नहीं, आत्मसुख से बढ़ कर कोई सुख नहीं और आत्मज्ञान से बढ़ कर कोई ज्ञान नहीं। ‪#‎पूज्यबापूजी‬

Tuesday, 21 June 2016

21 June - International Yoga Day

 

हमारी शारीरिक व मानसिक आरोग्यता का आधार हमारी जीवनशक्ति है। इसे ‘प्राण-शक्ति’ भी कहते हैं। हमारे जीवन जीने के ढंग के अनुसार हमारी जीवनशक्ति का ह्रास या विकास होता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास कहा गया है | पूज्य बापूजी बताते हैं : ” जिसका शरीर स्वस्थ नहीं रहता उसका मन अधिक विकारग्रस्त होता है | इसलिये रोज प्रातः व्यायाम एवं आसन करने का नियम बना लो | रोज प्रातः काल 3-4 मिनट दौड़ने और तेजी से टहलने से भी शरीर को अच्छा व्यायाम मिल जाता है | सूर्यनमस्कार किया करो तो उत्तम है | इसमें आसन व व्यायाम दोनों का समावेश होता है | व्यायाम का अर्थ पहलवानों की तरह मांसपेशियाँ बढ़ाना नहीं है | शरीर को योग्य कसरत मिल जाय ताकि उसमें रोग प्रवेश न करें और शरीर तथा मन स्वस्थ रहें – इतना ही हेतु है | व्यायाम से भी अधिक उपयोगी आसन हैं | आसन शरीर के समुचित विकास एवं ब्रह्मचर्य-साधना के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं | इनसे नाड़ियाँ शुद्ध होकर सत्त्वगुण की वृद्धि होती है | वैसे तो शरीर के अलग-अलग अंगों की पुष्टि के लिये अलग-अलग आसन होते हैं, परन्तु मयूरासन, पादपश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन आदि थोड़ी बहुत सावधानी रखकर हर कोई कर सकता है | इनमें से पादपश्चिमोत्तानासन तो बहुत ही उपयोगी है |

Monday, 20 June 2016

दक्षिणायन

हिंदु पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं अर्थात एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन या अयन “ उत्तरायण और दक्षिणायन ” कहा जाता है। कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब तक के समय को उत्तरायण कहते हैं। यह समय छ: माह का होता है। तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं। इस प्रकार यह दोनो अयन 6 - 6 माह के होते हैं।

 


दक्षिणायन का प्रारंभ 20 से 22 जून के बीच माना जाता है। इस दिन सूर्य का उत्तरायण से दक्षिणायन में प्रवेश होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दक्षिणायन का काल देवताओं की रात्रि है। इस समय रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं। दक्षिणायन में सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है।

 

दक्षिणायन व्रतों एवं उपवास का समय होता है। इसमें विवाह, मुंडन, उपनयन आदि विशेष शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं परन्तु आध्यात्मिक उन्नति के लिये यह बहुत ही उत्तम समय है। दक्षिणायन में किये गये जप - तप, मंत्र अनुष्ठान, मौन व दान का कई गुना अधिक फल होता है। चतुर्मास भी दक्षिणायन में ही आता है।

Sunday, 19 June 2016

Food for Thought by H. H. Asharam Bapu Ji

गुरु के द्वार अहं लेकर जाने वाला व्यक्ति गुरु के ज्ञान को पचा नहीं सकता, हरि के प्रेमरस को चख नहीं सकता। शिष्य की श्रद्धा को परखने एवं उसकी योग्यता को बढ़ाने के लिये ही गुरु कसौटी करते हैं।



Tuesday, 7 June 2016

प्रधान टाइम्स न्यूज़ - नि:शुल्क प्राकृतिक चिकित्सा शिविर

5-June-2016 - पूज्य संत श्री आशारामजी बापू आश्रम हरिद्वार में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा की पूर्णाहुति हुई। साथ ही सप्ताह भर से चल रहे नि:शुल्क प्राकृतिक चिकित्सा शिविर का भी साधकों को खूब लाभ मिला |


 

Saturday, 4 June 2016

5-June-2016: Satang at Ashram Haridwar

"सत्संग की आधी घड़ी सुमिरन वर्ष पचास, बरखा बरसे एक घड़ी अरट फिरे बारहों मास।"

 

पूज्य संत श्री #AsharamBapuJi आश्रम हरिद्वार में श्री सतीश भाईजी का सत्संग -

5 जून, शाम - 5 बजे से ।

 

अधिक से अधिक संख्या में पहुँच कर सत्संग का लाभ अवश्य लें ।

 
 

Friday, 3 June 2016

गुरुदेव ही बताते है सच्चा जीवन जीने की युक्ति

सदैव भगवत् कथा का ही रसपान करें, भगवान के विषय में ही सुनें, भगवान के विषय में ही सोचें तो जीवन भगवतमय हो जाएगा।

 
 

Thursday, 2 June 2016

H. H. Asharam Bapu Ji Satsang

हयात महापुरुष के दर्शन व सत्संग से आत्मज्ञान बड़ा ही सरल हो जाता है। सम्पूर्ण भाव से उनकी शरण में जाने से हमें सच्चा जीवन, सच्चा ज्ञान एवं सच्चा प्रेम मिलने लगता है।