सर्व फलदायक जन्माष्टमी व्रत - 25th अगस्त
जन्माष्टमी व्रत अति पुण्यदायी है | "स्कंद पुराण" में आता है कि " जो लोग जन्माष्टमी व्रत करते हैं या करवाते हैं, उनके समीप सदा लक्ष्मी स्थिर रहती है | व्रत करनेवाले के सारे कार्य सिद्ध होते हैं | जो इसकी महिमा जानकर भी जन्माष्टमी व्रत नहीं करते, वे मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होते हैं |"
प्रेमावतार का प्राकट्य दिवस - जन्माष्टमी
चित्त की विश्रांति सामर्थ्य की जननी है। सामर्थ्य क्या है? बिना व्यक्ति, बिना वस्तु के भी सुखी रहना – ये बड़ा सामर्थ्य है। अपना ह्रदय वस्तुओं के बिना, व्यक्तियों के बिना भी परम सुख का अनुभव करे – यह स्वतंत्र सुख परम सामर्थ्य बढ़ाने वाला है। श्रीकृष्ण के जीवन में सामर्थ्य है, माधुर्य है, प्रेम है। जितना सामर्थ्य उतना ही अधिक माधुर्य, उतना ही अधिक शुद्ध प्रेम है श्रीकृष्ण के पास |
पैसे से प्रेम करोगे तो लोभी बनायेगा, पद से प्रेम करोगे तो अहंकारी बनायेगा, परिवार से प्रेम करोगे तो मोही बनायेगा लेकिन प्राणिमात्र के प्रति समभाव वाला प्रेम रहेगा, शुद्ध प्रेम रहेगा तो वह परमात्मा का दीदार करवा देगा।
प्रेम किसीका अहित नहीं करता। जो स्तनों में जहर लगाकर आयी उस पूतना को भी श्री कृष्ण ने स्वधाम पहुँच दिया। पूतना कौन थी ? पूतना कोई साधारण स्त्री नहीं थी पूर्वकाल में राजा बलि की बेटी थी, राजकन्या थी | भगवान वामन आये तो उनका रूप सौंदर्य देखकर उस राजकन्या को हुआ कि " मेरी सगाई हो गयी है, मुझे ऐसा बेटा हो तो मैं गले लगाऊँ और उसको दूध पिलाऊँ " लेकिन जब नन्हा – मुन्ना वामन विराट हो गया और बलि राजा का सर्वस्व छीन लिया तो उसने सोचा कि " मैं इसको दूध क्यों पिलाऊँ? इसको तो जहर पिलाऊँ, जहर।"
वही राजकन्या पूतना हुई, दूध भी पिलाया और जहर भी। उसे भी भगवान ने अपना स्वधाम दे दिया। प्रेमास्पद जो ठहरे ……!
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