गुरु कहें या संत, इनकी महिमा का पूरी तरह से वर्णन करने में तो वेद और शास्त्र भी अपने को असहाय महसूस करते हैं। पूज्य बापूजी के श्रीवचन हैं कि गुरु शिष्य के कल्याण के लिये सब कुछ करते हैं। उनके अंदर निरंतर स्नेह की धारा बहती रहती है। सतशिष्य वही है जो गुरु के आदेश के अनुसार चले। उनके वचनों में कभी शंका ना करे, कोई अंतर्विरोध ना करे। तो अंत में एक दिन गुरुकृपा से सतशिष्य अपने अमरत्व का अनुभव कर ही लेगा और वह खुद गुरु – पद पर आसीन हो जायेगा। साथ ही उस सतशिष्य के सान्निध्य में आने वालों का भी कल्याण हो जायेगा।
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