In the Bhagwat, Bhagwan Krishna says - "O Udhava! Neither yoga nor knowledge, nor the recitation of scriptures, nor even austerities or renunciation or social service or charities or worship or learning, neither going to holy places, nor controlling the senses leads one to me as easily or as speedily as through SATSANG or through the association of the holy men."
Tuesday, 30 August 2016
Monday, 29 August 2016
If not in Human Birth then WHEN?
Food for Thought by H. D. H. Asharam Bapu Ji
"Silence your mind and listen the Divine Voice...OM"
Sunday, 28 August 2016
Ajaa Ekadashi
अश्वमेघ यज्ञ का फल देने वाली - अजा एकादशी (28 अगस्त)
युधिष्ठिर ने पूछा : जनार्दन ! अब मैं यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण) मास के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया बताइये ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकचित्त होकर सुनो । भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘अजा’ है । वह सब पापों का नाश करने वाली बतायी गयी है । भगवान ह्रषीकेश का पूजन करके जो इसका व्रत करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । पूर्वकाल में हरिश्चन्द्र नामक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा हो गये हैं, जो समस्त भूमण्डल के स्वामी और सत्यप्रतिज्ञ थे । एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर उन्हें राज्य से भ्रष्ट होना पड़ा । राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेच दिया । फिर अपने को भी बेच दिया । पुण्यात्मा होते हुए भी उन्हें चाण्डाल की दासता करनी पड़ी । वे मुर्दों का कफन लिया करते थे । इतने पर भी नृपश्रेष्ठ हरिश्चन्द्र सत्य से विचलित नहीं हुए । इस प्रकार चाण्डाल की दासता करते हुए उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गये । इससे राजा को बड़ी चिन्ता हुई । वे अत्यन्त दु:खी होकर सोचने लगे: ‘क्या करुँ ? कहाँ जाऊँ? कैसे मेरा उद्धार होगा?’ इस प्रकार चिन्ता करते-करते वे शोक के समुद्र में डूब गये ।
राजा को शोकातुर जानकर महर्षि गौतम उनके पास आये । श्रेष्ठ ब्राह्मण को अपने पास आया हुआ देखकर नृपश्रेष्ठ ने उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतम के सामने खड़े होकर अपना सारा दु:खमय समाचार कह सुनाया । राजा की बात सुनकर महर्षि गौतम ने कहा : ‘राजन् ! भादों के कृष्णपक्ष में अत्यन्त कल्याणमयी ‘अजा’ नाम की एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करनेवाली है । इसका व्रत करो । इससे पाप का अन्त होगा । तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है । उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना ।’ ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये ।
मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्र ने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया । उस व्रत के प्रभाव से राजा सारे दु:खों से पार हो गये । उन्हें पत्नी पुन: प्राप्त हुई और पुत्र का जीवन मिल गया । आकाश में दुन्दुभियाँ बज उठीं । देवलोक से फूलों की वर्षा होने लगी । एकादशी के प्रभाव से राजा ने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्त में वे पुरजन तथा परिजनों के साथ स्वर्गलोक को प्राप्त हो गये ।
राजा युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं । इसके पढ़ने और सुनने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है ।
Friday, 26 August 2016
Janmashtami Celebrations at AshramHaridwar
कल "जन्माष्टमी" के पावन पर्व पर हरिद्वार आश्रम में बच्चों द्वारा "राधाकृष्ण" एवं "गोप-गोपियों" के रूप में एक नाटिका प्रस्तुत की गई जिसमें बच्चों ने मटकी फोड़ी व नृत्य किया। इसके पश्चात् बच्चों ने पूज्य बापूजी की आरती करी और प्रसाद पाया। कार्यक्रम के अंत में बच्चों को नोटबुक व पेन वितरित किये गये।
Wednesday, 24 August 2016
25 August - Krishna Janmashtami
सर्व फलदायक जन्माष्टमी व्रत - 25th अगस्त
Monday, 22 August 2016
जब कुल्हाड़ी भी चंदन की सुवास महकाने लगी
एक व्यक्ति देश, धर्म, संस्कृति और संतों की खूब निंदा करता था। उसने अपनी टोली बना ली थी एवं भगवद्भक्तों, सज्जनों को व्यर्थ ही सताता था। यदि किसी को तामसी प्रकृति कैसी होती है यह देखना हो तो बस उसी को देख ले। राक्षसी एवं मोहिनी प्रकृति का मानो वह मूर्तिमान स्वरूप था। एक महात्मा अपने शिष्यों के साथ विचरण करते हुए उस क्षेत्र में पहुँचे । त्राहिमाम्……त्राहिमाम् पुकार रहे लोगों ने उन्हें अपनी व्यथा बतायी । महात्मा अपने शिष्यों से बोले :
‘‘ऋषिकुमारो ! मैंने तुम्हें जो शिक्षा दी है, उसको व्यवहार में लाने का समय अब आ गया है । तुम लोग मिलकर इन लोगों की व्यथा दूर करो।“
शिष्य उस क्षेत्र में जाकर सत्प्रचार करने लगे परंतु वे जहाँ भी जाते निंदकों की टोली के लोग नशा करके वहाँ आ जाते और उन्हें गालियाँ देते, अनर्गल वचन बोलते, यहाँ तक कि पत्थर भी मारते । कुछ ही दिनों में सभी शिष्य वापस आये और महात्मा से बोले : ‘‘गुरुजी ! हमने खूब प्रयास किये मगर निंदकों की वह टोली और उनका वह मुखिया... मानो हमारे धैर्य की परीक्षा लेने की ठान बैठे हों । वे सर्वहितकारी सनातन संस्कृति की जडें उखाडने का प्रण ले बैठे हैं।“
महात्मा बोले : ‘‘मैंने तुम्हें चंदन बनने की शिक्षा दी है । जो कुल्हाडी चंदन को काटती है, वह भी समय पाकर सुगंधित हो जाती है । कंचन की ही अग्नि - परीक्षा ली जाती है । धैर्य की कठिन कसौटी पर खरे उतरनेवालों को ही ‘धीर’ पद (अडिग आत्मपद) की प्राप्ति होती है । जब वे लोग बुराई का मार्ग नहीं छोड रहे हैं तो तुम भलाई का मार्ग बीच में ही छोडकर वापस कैसे आ गये ? क्या कभी बुराई भलाई से अधिक बलशाली हो सकती है ? आर्यवीरों ! मुझे विश्वास है दृढता के मामले में तुम उनसे कदापि कम नहीं साबित हो सकते ! अपनी महिमा में जागो !”
शिष्यों की अंतरात्मा जागृत हुई । वे आपस में चर्चा करने लगे कि ‘‘एक अकेले निगुरे व्यक्ति और उसकी टोली में ऐसी दृढता हो सकती है तो ऐसे महान गुरु के हम शिष्यों में कितनी होनी चाहिए ! हमारे गुरुदेव ने कितनों का जीवन परिवर्तित किया है तो हम उनके सिद्धांतों की ध्वजा ऐसे क्षेत्र में भी क्यों नहीं फहरा सकते! अब हमें सफलता पाने तक मैदान नहीं छोडना है।"
“ बाधाएँ कब बाँध सकी हैं पथ पे चलनेवालों को।
विपदाएँ कब रोक सकी हैं आगे बढने वालों को।।“
वे दोबारा उस क्षेत्र में गये और वहाँ देहभान भूलकर, निर्भय हो कर ऐसे तो अपने गुरु के सिद्धांत के सत्प्रचार में जुट गये मानो सिद्धांतमय हो गये । जैसे चट्टानों को तोडकर नदी का प्रवाह अपना मार्ग बना लेता है और पत्थरों को चीर के पीपल अपनी जडें जमा लेता है वैसे ही वे दुष्प्रचार के उस कलिकालमय वातावरण में भी सत्प्रचार की सुवास फैलाने में सफल हो गये । एक-एक करके निंदक-टोली के मुखिया के सभी साथियों ने उसका साथ छोड दिया और आखिर वह अकेला पड गया । पूरे क्षेत्र में उन महात्मा के नाम की जयजयकार होने लगी । उस दुरात्मा को अपने किये पर पश्चात्ताप होने लगा । वह जाकर उन महात्मा के श्रीचरणों में पड गया और अपने किये की माफी माँगते हुए गिडगिडाने लगा । महात्मा की करुणा पाकर वह उनका शिष्य बन गया और उसका पूरा जीवन ही परिवर्तित हो गया । चंदन अपनी महिमा में डट गया था, अब कुल्हाडी भी चंदन की सुवास महकाने लगी थी । उस क्षेत्र से विदाई की वेला में महात्मा के चेहरे पर मंद - मंद मुस्कान छलक रही थी और शिष्यों के हृदय में उमड रहा था गुरु - सिद्धांत की अजेयता का विलक्षण अनुभव !
देश, धर्म और संस्कृति का संरक्षण एवं पुनरुद्धार करनेवाले ऐसे महागुरु कभी - कभार धरती पर आते हैं और उनसे निभानेवाले सुशिष्य ही ऐसे दैवी कार्य के जागृत प्रहरी बन जाते हैं । सब कुछ सहते हुए सबका मंगल चाहने वाले इन्हीं के द्वारा समाजोद्धार का महत्कार्य सम्पन्न होता रहता है । पर कृतकृत्य तो वही समाज हो पाता है जो उन्हें समझ पाता है जीवित महापुरुष की हयाती में ही उनसे लाभ ले पाता है । अन्यथा बाद में तो केवल पश्चात्ताप ही शेष रह जाता है।
साभार :- लोक कल्याण सेतु
Sunday, 21 August 2016
Ganesh Chaturthi
आज 21 अगस्त 2016 रविवार को सुबह 08:18 से संकष्ट चतुर्थी है। चंद्रोदय - रात्रि 9.21 मिनट पर।
विघ्न और मुसीबतें दूर करने के लिए :-
आज गणपतिजी का पूजन करें और रात को चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अर्घ्य दें और निम्न मंत्र बोलें :-
" ॐ गं गणपते नमः।"
" ॐ सोमाय नमः।"
Saturday, 20 August 2016
Health is Wealth
पूज्य बापूजी कहते हैं - " उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु की प्राप्ति के लिये अपनाएँ जैविक घडी पर आधारित दिनचर्या एवं रहें आनंदित।"
Friday, 19 August 2016
Better Light a Candle than to Curse the Darkness
"The Master (GURU) reflects the Light of GOD. We look at his manifest form and do not know that he is the Almighty Himself. Although he comes in the guise of man, in reality, he is GOD Himself." - RUMI
SANT TULSIDAS says, "I bow before the holy feet of the Master. He is the Ocean of Love and Compassion. He is, indeed, GOD in the guise of man whose words dispel the darkness of our worldly attachments as the rays of the Sun dispel physical darkness."
Thursday, 18 August 2016
Raksha Bandhan - #वैदिक_रक्षा_बंधन
रक्षा बंधन - 18 अगस्त 2016
जानिए कैसे मनाएँ #वैदिक_रक्षा_बंधन :-
वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि :
इसके लिए ५ वस्तुओं की आवश्यकता होती है - (१) दूर्वा (घास) (२) अक्षत (चावल) (३) केसर (४) चन्दन (५) सरसों के दाने। इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी ।
इन पांच वस्तुओं का महत्त्व - (१) दूर्वा - जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमें सदगुणों का विकास तेज़ी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ती जाए । दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन से विघ्नों का नाश हो जाए ।
(२) अक्षत - हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे।
(३) केसर - केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।
(४) चन्दन - चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो । साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।
(५) सरसों के दाने - सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान अथवा गुरुदेव के श्रीचित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं व पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।
राखी बाँधते समय बहन यह मंत्र बोले– " येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल ||"
शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय ‘अभिबन्धामि ‘ के स्थान पर ‘रक्षबन्धामि’ कहे |
चाकलेट ना खिलाकर भारतीय मिठाई या गुड से मुहं मीठा कराएँ। अपना देश, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा, अपना गौरव !!!
Tuesday, 16 August 2016
Vishnupadi Sankranti
१६ अगस्त - विष्णुपदी संक्रान्ति (पुण्यकाल दोपहर १२.१५ से शाम ६.४१ तक)
इस दिन किये गये जप - ध्यान व पुण्यकर्म का फल लाख गुना होता है। - पद्मपुराण
Monday, 15 August 2016
15 August - Independence Day
देश आज़ाद हुआ पर क्या देश की मानवता आज़ाद हो पायी? निर्दोष संतों पर जेल में घोर अत्याचार, बिना कारण जेल की गुलामी व दोषियों को समाज में आज़ादी ये कैसा #IndependenceDay है? सच्ची आज़ादी तो वही है जो संत सम्मत हो। उसी में सभी का हित व कल्याण निहित है। संतों द्वारा समाज के लिये किये जाने वाले सेवा कार्यों को देखकर तो यही लगता है किें समाज को सच्ची आज़ादी केवल और केवल #आशारामबापूजी जैसे संतों द्वारा ही मिल सकती है। #विश्वगुरु_भारत
Wednesday, 10 August 2016
Budhwari Ashtami and Sant Tulsidas Jayanti
10 अगस्त – बुधवारी अष्टमी व संत तुलसीदास जयंती। मंत्र जप एवं शुभ संकल्प हेतु विशेष तिथि। सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, बुधवारी अष्टमी – ये चार तिथियाँ सूर्यग्रहण के बराबर कही गयी हैं। इनमें किया गया जप -ध्यान, स्नान, दान व श्राद्ध अक्षय होता है।
“ बिनु सत्संग बिबेक ना होई।
राम कृपा बिनु सुलभ ना सोई।।“
संत तुलसीदास कहते हैं कि सत्संग व संतों का संग किए बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती और सत्संग तभी मिलता है जब ईश्वर की कृपा होती है। यह आनंद व कल्याण का मुख्य हेतु है। अन्य सभी साधन तो मात्र पुष्पों की भांति है। संसार रूपी वृक्ष में यदि फल हैं तो वह सत्संग है। उदर पूर्ति तो फलों से ही संभव है ना कि पुष्पों से।
Monday, 8 August 2016
Karmas and its relation to Transmigration
The Saints have given a clear explanation of the theory of Karmas and its relation to transmigration. It is based on the Law of Causation. When a seed is sown, its fruit must necessarily be of that particular seed. Whenever an individual goes after death, he takes along with him the account of his deeds. It is nature of the mind and senses to indulge in actions. So long as the mind is not detached... from this world, it is impossible for it to free itself from actions. To become "Desireless" one must learn the art of performing " Actionless Actions." How? Bhagwan Krishna says :-
" Whatever you do, whatever you eat, whatever you offer, whatever you give, whatever penances you undergo, O Arjun ! do that all in my name. In this way you will get deliverance from the bondage of actions and their good or bad results. Treading thus the Path of Renunciation, you will become free and come into my Presence." (Shrimad Bhagwad Gita)
Saturday, 6 August 2016
GuruBhaktiYog by H. D. H. Asharam Bapu Ji
अगर आप सांसारिक मनोवृति वाले लोगों का संग करेंगे तो आपको सांसारिक लोगों के गुण मिलेंगे। इसके विपरीत, जो सदैव परम सुख में निमग्न रहते हैं, सर्वगुणों के धाम हैं, जो साक्षात प्रेमस्वरूप हैं - ऐसे सद्गुरु के चरणकमलों की सेवा करेंगे तो आपको उनके गुण प्राप्त होंगे। तमाम दुर्गुणों को निर्मूल करने का एकमात्र प्रभावशाली उपाय है - "गुरुभक्तियोग" का आचरण।
Thursday, 4 August 2016
Guru Bhakti Yog - Asharam Bapu Ji Satsang
स्वामी शिवानंद सरस्वती "गुरुभक्तियोग" में कहते हैं, “ गुरु को देहस्वरुप में या एक व्यक्ति के स्वरूप में नहीं माना जाता अपितु परम सत्य के प्रतिनिधि के रूप में माना जाता है। गुरु पर अवलंबन शिष्य की आत्मशुद्धि की निरंतर प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिष्य ईश्वरीय परम तत्व का अंतिम लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।“
भोले बाबा भी “ छंदावली ” में कहते हैं :-
“ गुरुदेव अद्भुत रूप, हैं परधाम माह...ीं विराजते।
उपदेश देते सत्य का, इस लोक में आ जावते।।
दुर्गम्य का अनुभव करा, भय से परे ले जावते।
पर धाम में पहुंचाय कर, स्वराज्य पद दिलवावते।।
संत प्रीतम दासजी कहते हैं :-
" गुरु को माने मानवी, देखे देह व्यवहार,
कह 'प्रीतम' संशय नहीं, पड़े नरक मोझार।"
Tuesday, 2 August 2016
Rekha bahen Satsang at AshramHaridwar
" साथी सगे सब स्वार्थ के, यह स्वार्थ का संसार है।
नि:स्वार्थ सद्गुरु देव हैं, सच्चा वही हितकार है।।
ईश्वर कृपा होवे तभी, सद्गुरु कृपा जब होय है।
सद्गुरु कृपा बिनु ईश भी, नहीं मैल मन का धोय है।।"
“भोले बाबा” की “छंदावली” की उपरोक्त पंक्तियों के साथ ही संतश्री आशारामजी बापू आश्रम, हरिद्वार में कल शाम सात बजे से सत्संग आरंभ हुआ। श्रावण मास के सोमवार व मासिक शिवरात्रि के अवसर पर आयोजित इस सत्संग में साध्वी रेखा बहन ने बताया कि सेवक का सेवा - धर्म सबसे ऊँचा है। कई शिव मंदिर ऐसे मिल जाएँगे जिनमें माता पार्वती, कार्तिक भगवान या गणेश भगवान विराजमान ना हों जबकि वे शिव परिवार के सदस्य हैं परंतु एक भी शिव मंदिर ऐसा नहीं मिलेगा जिसमें नंदी महाराज विराजमान ना हो। सेवक के बिना स्वामी भी नहीं रह सकते। सत्संग के बाद “रुद्राष्टकम्” व “श्रीशिवपंचाक्षरस्तोत्रम्” का पाठ हुआ। रेखा बहन ने “पंचाक्षर मंत्र (नम: शिवाय)” तथा “मृत्युंजय” मंत्र का जप भी कराया। साधकों ने उत्साहपूर्वक सत्संग में भाग लिया।
Monday, 1 August 2016
Masik Shivratri at Haridwar
कल 1 अगस्त - मासिक शिवरात्रि व श्रावणी सोमवार :
जिस तिथि का जो स्वामी हो उसकी तिथि में आराधना-उपासना करना अतिशय उत्तम होता है । चतुर्दशी के स्वामी भगवान शिव हैं । अतः उनकी रात्रि में किया जानेवाला यह व्रत ‘शिवरात्रि' कहलाता है । प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात्रि में गुरु से प्राप्त हुए मंत्र का जप करें । गुरुप्रदत्त मंत्र न हो तो पंचाक्षर (नमः शिवाय) मंत्र के जप से भगवान शिव को संतुष्ट करें ।
प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रात्रि में गुरु से प्राप्त हुए मंत्र का जप करें । गुरुप्रदत्त मंत्र न हो तो पंचाक्षर (नमः शिवाय) मंत्र के जप से भगवान शिव को संतुष्ट करें ।
मासिक शिवरात्रि
प्रति वर्ष में एक महाशिवरात्रि आति है और हर महीने में एक मासिक शिवरात्रि आती है । उस दिन शाम को बराबर सूर्यास्त हो रहा हो उस समय एक दिया पर पाँच लंबी बत्तियाँ अलग-अलग उस एक में हो शिवलिंग के आगे जला के रखना बैठ कर भगवान शिवजी के नाम का जप करना प्रार्थना कर ना इससे व्यक्ति के सिर पे कर्जा हो तो जल्दी उतरता है आर्थिक परेशानियाँ दूर होती है ।
आर्थिक परेशानी से बचने हेतु हर महीने में शिवरात्रि (मासिक शिवरात्रि-कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी) को आती है । तो उस दिन जिसके घर में आर्थिक कष्ट रहते है वो शाम के समय या संध्या के मसय जप-प्रार्थना करें एवं शिवमंदिर में दीप-दान करे । और रात को जब 12 बजे जायें तो थोड़ी देर जाग कर जप और एक श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें । तो आर्थिक परेशानी दूर हो जायेगी ।
हर मासिक शिवरात्रि को सूर्यास्त के समय घर में बैठकर अपने गुरुदेव का स्मरण करके शिवजी का स्मरण करते-करते ये 17 मंत्र बोलें, जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो, वो शिवजी के मंदिर में जाकर दिया जलाकर ये 17 मंत्र बोले । इससे कर्जा से मुक्ति मिलेगी...
1). ॐ नमः शिवाय नमः
2). ॐ सर्वात्मने नमः
3). ॐ त्रिनेत्राय नमः
4). ॐ हराय नमः
5). ॐ इर्न्द्मखाय नमः
6). ॐ श्रीकंठाय नमः
7). ॐ सद्योजाताय नमः
8). ॐ वामदेवाय नमः
9). ॐ अघोरर्ह्द्याय नमः
10). ॐ तत्पुरुषाय नमः
11). ॐ ईशानाय नमः
12). ॐ अनंतधर्माय नमः
13). ॐ ज्ञानभूताय नमः
14). ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नमः
15). ॐ प्रधानाय नमः
16). ॐ व्योमात्मने नमः
17). ॐ युक्तकेशात्मरुपाय नमः
-श्री सुरेशानंन्दजी